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पाण्डव-पुराण |
इसके बाद वे विपन्न पाण्डव कुन्ती सहित मसान भूमिमें पहुॅचे। वहाँ पहुँच कर उपाय खोज निकालनेमें प्रवीण भीमने अपनी रक्षाके लिए एक नई ही युक्ति खोज निकाली और उसने उसे कार्य रूपमें परिणत भी करें दिया । वह ५ मसान भूमिसे छह मुर्दे उठा लेजा कर उन्हें अति शीघ्र जलते हुए लाखके महल में डाल आया । इस लिए कि जिससे लोग समझें कि पांडव जल कर मर गये । उसे किसीने भी देख न पाया, और वह अति शीघ्र पीछा लौट आया । इसके बाद वे राज-नन्दन पांडव चुप-चाप वहाँसे चल दिये । वे जाते हुए ऐसे शोभते थे मानों पहाड़ ही चलते हैं ।
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यह बात सारे सब लोगोंको
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उधर जब हस्तिनापुरमें सबेरा हुआ तब ऊपरसे दुःखका ढोंग दिखाते हुए कपटी कौरव पांडवोंको देखनेके लिए आये । धीरे धीरे नगरमें फैल गई । इस अनहोनी वातको सुन कर नगरके बड़ा दुःख हुआ— सबके हृदयोंमें वज्रसे भी भयंकर चोट लगी । उनके मुँह से निकली हुई हाहाकारकी ध्वनिने सारे नगरको शोक-पूरित कर दिया। वे लोग तीव्र दुःख के आवेग से रोते और कहते थे कि आज इस नगर में समझ लो कि श्रेष्ठ और सज्जन पुरुषोंका नाम शेष ही हो गया है । न जाने किस दुष्ट वैरीने इन सत्पुरुषोंको कालके मुँहमें पहुॅचा दिया है । पुण्य से पांडव कितने अच्छे पण्डित, शान्ति, निर्मल-चित्त, तेजस्वी और धनुष -विद्या- कुशल थे । वे कितने पराक्रमी थे । उनके पराक्रमके आगे सभी शीस झुकाते थे । उन्होंने अपने पराक्रम से सब राजों - महाराजों पर विजय पाली थी । आश्चर्य है कि ऐसे पराक्रमी और महाभाग को भी दुष्ट कर्मोंने अपने जाल में फॅसा लिया वे भी इनके पंजेसे न छूटे । अहो, कर्म, तेरी चतुराईको धिकार है, असंख्य और अनंत वार धिक्कार है जो तूने ऐसे अच्छे विद्वान और बुद्धिमान पांडवोंको भी भस्म कर दिया । एवं पांडवोंके वियोगसे दुःखी होकर कोई कहता था कि विचार करने से मुझे यह सन्देह होता है कि ऐसे विद्वान् और व्यवहार कुशल पांडव कैसे भस्म किये गये और क्यों किये गये। मुझे यह भी सन्देह है कि ऐसे उत्तम - पुरुषोंका इस रीति से मरण हो । इसका कोई विशेष कारण नहीं जाना जाता ! और एक बात यह भी है कि पुण्यात्मा पुरुष प्राय: करके हीन आयुवाले नहीं ' होते और जो होते भी हैं उनका इस तरहसे मरण नहीं होता । देखो, आज सारा नगर कैसा बुरा उजाड़ सा देख पड़ता है । हा, अब ऐसे ऊजड़ नगरमें भला हम लोग कैसे रह सकेंगे । आज तो ऐसा दीखता है कि मानों मेघकी
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