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तरहवाँ अध्याये । तुम्हारे सभी झगड़े-टंटे तय हो जायेंगे; फिर किसीसे कोई प्रकारका वाद-विवाद या व्यर्थका वितण्डा न होगा । देखो, तुम लोग जुदा रहनेमें कुछ भी भय न करो । मैं तो जानता हूँ कि तुम्हें जुदे रहने में ही सुख होगा। पांडव गुरुआज्ञाके प्रतिपालक और गुणोंसे पूर्ण थे । वे उसी समय शुभ मुहूर्त और शुभ दिन दिखवा कर अपने घरको चले गये और जब वह शुभ दिन आया तव उन्होंने शुभ मुहूर्तमें नये महल में प्रवेश किया । उनके प्रवेश समय बड़ा महोत्सव मनाया गया था । उस समय भेरियोंका सुहावना और महान शब्द दशों दिशाओंमें गूंज रहा था । नगाड़ोंकी गर्जना हो रही थी। वंशीकी सुरीली आवाजसे कर्ण-कुहर गूंज रहे थे । रोमाञ्च हुए नट-गण विशाल मृदंग, ताल, कंसाल, वीणा आदि वादिनोंकी लयके साथ मनोहारी नृत्य करते थे । कामिनी-गण अपने सुन्दर नादसे पांडवोंके गुणोंको गाती थीं । गायक-गण सुहावने मंगलगीत गाते थे । इस तरह बड़े ठगट-वाटके साथ यथायोग्य दान देते हुए उन मंगल-मूर्तियोंने नये महलमें प्रवेश किया । वहाँ रहते हुए वे स्थिर-चित्त पांडव गरीबोंको दान देते थे और ऊँच कुली लोगोंका उचित आव-आदर और मानसन्मान करते थे । एवं वे पूज्य पुरुषोंकी पूजा-प्रभावनामें भी कभी आगा-पीछा नहीं सोचते थे । वे शुद्ध बुद्धिसे धर्म-कर्मका निर्वाह करते थे । उनको कभी भी धर्म-कर्ममें प्रमाद तथा आलस नहीं सताता था । तात्पर्य यह कि वे विद्वान् वहाँ सुखका अनुभव करते हुए निर्भयतासे रहते थे । उन्हें न तो किसी वातका भय था और न चिन्ता ही । वे सरल चित्त थे, अतः उन्होंने कौरवोंके इस कपट-माया-जालको विल्कुल ही नहीं जाना । अत एव वे वहाँ सरलताका व्यवहार करते हुए सुखसे रहने लगे । और है भी ऐसी ही बात कि काठकी भीतरी पोलको कौन जान सकता है कि उसमें क्या भरा है । परन्तु धीरे धीरे किसी तरह विदुरको यह पता लग गया कि यह महल लाखसे बनाया गया है । विदुर दयाल्ल था और तेजशाली था । अतः कौरवोंके मायाजालको समझ कर उसने कौरवोंके कपटसे अज्ञात तथा जिनदेवमें सच्ची श्रद्धा रखनेवाले युधिष्ठिरको बुला कर कहा कि वत्स, सज्जनोंको सज्जनों पर ही विश्वास करना चाहिए; दुर्जनों-दुष्टों-पर नहीं । नहीं तो उनके द्वारा वैसे ही दुःख सहने पड़ते हैं जैसे कि सॉपके द्वारा । देखो, अपरसे मीठे बोलनेवाले और भीतरसे महा मैले इन दुष्टोंसे सज्जनोंको हमेशा दूर ही रहना चाहिए; नहीं तो दुःख अवश्यंभावी है जैसे कि काई चढ़े हुए पत्थर पर भूलसे भी यदि पैर पड़
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