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पाण्डव-पुराण |
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शोभाशाली और सुन्दर जान पड़ता है और लोगोंको भ्रममें डाल देता है कि कहीं ऋद्धि-सम्पन्न कौरवोंका कुल ही तो नहीं है । उसके शिखर बड़े ऊँचे हैं, अत एव वहाँ आकर अपनी मार्गकी थकावट दूर करने को कभी कभी खेद खिन्न चॉद रातमें ठहर जाता है । उसके शिखरोंमें जो धुजायें लगी हुई हैं वे जिस समय हवाके वेगसे फड़-फड़ाती हुई फहराती हैं तव ऐसा मालूम होने लगता है कि वह महल अपने हृदयमें स्थान देनेके लिए इन धुजाओं-रूप हाथों के इशारेसे स्वर्ग देवताको ही बुलाता है । सुस्थिर थंभोंवाले और लोगोंको आश्रय देनेवाळे उस महलके वाणके जैसे तीखे शिखरों द्वारा आकाशमें विचरनेवाले ग्रहन्तारागणोंके विमान घिस जाते हैं और क्षीण हो जाते हैं ।
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देव, यह उत्तम और सिद्धि-साधक महल हमने पाडवोंके लिए बनवाया है, अतः इसे अब उनके रहने के लिए दे दीजिए । महाराज, हम चाहते हैं कि स्थिरचित्त युधिष्ठिर दर्शों दिशाओंमें अपने तेजको फैला कर, सुख-शान्तिसे राज्य करते हुए इस नये महलमें रहें और हम सब राजकी आयसे सुख भोगते हुए समुद्री नाँई अचल और चिन्ता-रहित हो, स्थिर चित्तसे अपने ही महलमें रहें । कौरवोंके इन मधुर वचनोको सुन कर उदार-बुद्धि और सरल - चित्त पितामह बोले कि जो तुमने कहा वह ठीक है; तुम्हारी बात मेरे गले उतर गई । तुमने जो कुछ सलाह दी वह मुझे पसंद आई है। कारण कि मैं जानता हूँ कि तुम्हारा एक जगह रहना परम वैरका कारण हैं । जहाँ मनमें कुछ मैल रहता है वहाँ जरा जरासी वातों परसे वैर-विरोध खड़ा हो जाता है । इस लिए वैर-विरोध मिटाने के लिए तुम्हारा जुदा जुदा रहना ही अच्छा है । जहाँ परिवारके लोगों में लड़ाई झगड़ा हुआ करता है भला, वहाँ सुख हो ही कहाँसे सकता है। देखिए, भरत चक्रवर्ती और वाहुवलीने इसी कौटुम्बिक कलहसे क्या कुछ फल उठाया था । अतः तुम लोगोंका जुदा रहने में ही सुख है और ऐसी ही हालत में राज्य सुखसे भोगा जा सकता है । देखिए, नेत्रोंके रहने के स्थान जुदे जुदे हैं, इसी लिए उनमें कुछ विरोध नहीं है ।
इस प्रकार निश्चय करके बुद्धिमें वृहस्पति तुल्य, राजसिंह भीष्म पितामहने पाण्डवको बुलाया और उनसे कहा कि धनुष-विद्यामें निपुण और इन्द्र-तुल्य पाण्डव-गण, तुम मेरे वचनोंको ध्यान देकर सुनो । वे तुम्हारे लिए सुखके कारण होंगे । तुम किसी अच्छे मुहूर्तमें, बहुत जल्दी, सुन्दर शरीरके जैसे इस नये महलमें रहने लगो । देखो, इसमें रहनेसे