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________________ દ્ ललकार कर वाण छोड़ते थे । सबने दृढ़ता से युद्ध कर अपनी मृत्यु निश्चित कर रक्खी थी; कोई भी पीछे पाँव देने को तैयार न था । इसी समय युद्ध करता हुआ रुक्मी कृष्ण के सामने आ गया । रुक्मिणीने यह देख कर अपने पिताका कृष्णको परिचय दिया । फल यह हुआ कि उसको रुक्मिणीके आग्रह से कृष्णने मारा तो नहीं; परन्तु नागपाशसे वाँध कर अपने रथमें डाल दिया | इसके बाद सैकड़ों अपराधों के अपराधी तथा क्रोधसे तप्त शिशुपालको हरि ( कृष्ण ) ने मार कर एक क्षणहीमें धराशायी कर दिया जैसे कि हरि ( सिंह ) हाथीको मार कर बात की बात में ही धराशायी कर देता है । इसके बाद रणभेरियोंके शब्द से शब्द - मय युद्धको उसी समय बन्द कर वह वली सेनाको साथ लेकर गिरनार पर्वत पर आया । वहाँ उसने रुक्मिणीको उत्साह देकर समझा कर उसके साथ विवाह कर लिया और बाद वह फहराती हुईं करोड़ों धुजाओं से परिपूर्ण द्वारिका चला आया । पाण्डव-पुराण | wwwwwwwnnw W एक दिन प्रसन्नचित्त दुर्योधनने समझा कर एक दूतको कृष्ण नारायणके पास भेजा । दूतने जाकर नारायणको सूचित किया कि प्रभो, दुर्योधन महाराजने आपके पास मुझे यह समाचार देकर भेजा है कि यदि आपके पहले पुत्र और मेरे पुत्री हो या मेरे पुत्र और आपके पुत्री हो तो उन दोनोंका परस्पर विवाह सम्बन्ध हो — इसमें कोई रुकावट न हो । यह सुन उत्तर में नारायणने कहा कि ठीक है जैसी दुर्योधन महाराजकी इच्छा है, मुझे स्वीकार है। इसके बाद कृष्णने दूतका योग्य आदर-सत्कार कर उसे वहाँसे विदा कर दिया । दूत वहॉ से चल कर अति शीघ्र हस्तिनापुर आ गया । इसके बाद कृष्णके रुक्मिणीके गर्भ से प्रद्युम्नका जन्म हुआ; परन्तु दैवयोग से उसे जन्म समयमें ही कोई वैरी हर ले गया और विजयार्द्ध पर्वत पर रहनेवाले किसी विद्याधरके यहाँ उस महाभागका पालन-पोषण हुआ । वहाँ वह सोलह वर्षकी अवस्था तक रहा और उसने वहाँ सोलह लाभ भी प्राप्त किये । इसके बाद वहाँसे उसे नारदजी द्वारिका पुरीको ले आये और वहाँ वह भाग्यशाली आनंद-चैन से रहने लगा । प्रद्युम्न कुमारके जन्म के बाद ही सुखिनी सत्यभामाने भानुकुमारको जन्म दिया, जिस तरह पूर्वदिशा भानु (सूरज) को पैदा करती है। भानु अँधेरेको दूर करता है, वह भी अपने शरीर की प्रभासे अँधेरेको दूर करता था । ;
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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