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________________ बारहवाँ अध्याय | १८३ कल्पवासियों के यहाँ घंटोंका नाद, ज्योतिषियों के यहॉ सिंह - नाद, व्यन्तरोंके यहाँ दुंदुभियोका शब्द और भवनवासियों के यहाँ शंख नाद होने लगा । जिसको सुन कर उन्होंने प्रभुके जन्मका निश्चय किया और वे बड़े भारी हर्षित हुए । ~M~ ^^ इसके बाद इन्द्रकी आज्ञासे सब देवगण इन्द्रके साथ साथ अपने अपने वाहनों पर सवार होकर स्वर्ग से आकाश मार्ग द्वारा पृथ्वीतल पर उतर कर द्वारिका में आये । इस समय उनके आनंदका कुछ पार न था । वहाँ आकर इन्द्रकी आज्ञासे गुप्त भेपमें इन्द्राणी प्रसूति गृहमें गई और वहाँ प्रभु सहित शिवादेवीको देख कर उसने उन्हें नमस्कार किया । इसके बाद वह प्रभुको सतृष्ण लोचनों से निरखती हुई जिन-जननीके सामने खड़ी हो गई । और जिनमाताके पास एक मायाभय चालकको सुला कर उसने प्रभुको गोदमें उठा लिया और उन्हें वह वाहिर इन्द्रके पास ले आई। मञ्जुको लाकर उसने घड़ी भारी भक्ति और प्रीतिसे इन्द्रकी गोद में दे दिया । इन्द्र प्रभुको गोदमें ले सुमेरु पर्वत पर ले गया । वहाँ उसने पांडुकवनकी पांडुकशिला पर जो अनादिसे एक सिंहासनके जैसी है, विराजमान कर क्षीरसागरके जलसे भरे हुए सोनेके एक हजार आठ कलशो द्वारा प्रभुका अभिषेक किया । अभिषेकके बाद प्रभुके गंधोदकको अपने अपने मस्तक पर चढ़ा सव देव- गण पवित्र हुए। उन्होंने प्रभुके स्नानके जलसे अपने कर्म कलंकको वहा दिया । अनन्तर इन्द्राणीने मधुके शरीरको पोंछ कर उन्हें दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाये । इस समय प्रभुके शरीरका सौंदर्य इतना बढ गया था कि इन्द्राणी उसको देख कर तृप्त ही नहीं होती थी । इसके बाद इन्द्राणी के साथ इन्द्रने प्रभुकी स्तुति करना आरंभ की कि प्रभो, आप स्वेद-रहित हैं, मल-रहित निर्मल हैं, विपुल हैं, आपका रुधिर दूधके जैसा सफेद है, आपके पहला संस्थान और पहला संहनन है और आप सार्वोत्तम हैं । तात्पर्य यह कि आपको सव मोक्ष-सामग्री प्राप्त है। स्वामिन्, आपका शरीर सुन्दरतासे परिपूर्ण है, नाना तरहकी सुगन्धिसे विभूषित है तथा एक हजार आठ लक्षणोंसे युक्त है । प्रभो, आप उपमा-रहित निरुपम हैं, वीर्यके भंडार हैं, हित, मित और प्रिय वचनोंके बोलनेवाले हैं, अतः प्रभो आपको मैं नमस्कार करता हूँ । आप शिवादेव पुत्र हैं और दस अनोखी बातों - अतिशयों से सुशोभित हैं, अरिष्ट-समूहको दूर करनेवाले हैं और कल्याण -रथकी धुरा हैं; अतः हे प्रभो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ । इस तरह प्रभुकी स्तुति कर इन्द्रने खूब ताण्डव नृत्य किया ।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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