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पाण्डव-पुराण । ___ अर्थात्-जिन, चक्रवर्ती बलभद्र आदि सवको पूर्ण उन्नतिके पदका सन्तोष देनेवाला रमणीय फल क्या है, सो कहो। ,
माताने उत्तर दिया, अमृत--मोक्ष ।
इनमें कोई मातासे विन्ती करती थी कि माता, तुम लोगोंके पाप-समूहको दूर करो। वह उन्हें बहुत दुःख देता है और उनकी आत्माको चन्द्रमाको ग्रसनेवाले राहुकी भाँति ग्रसता है। कोई माताका जयजयकार बोलती थी कि सुहावने मुँहवाली माता, तुम्हारी जय हो, देव और जगतके स्वामी पुत्रको पैदा करनेवाली, तीन लोककी सारी स्त्रियोंके रूपकी सीमा तथा कोयलके जैसे कंठवाळी हे माता, तुम जयवन्त रहो।
इस प्रकार देवियोंने जिनमातासे गूढ़ अर्थवाले बहुतसे प्रश्न किये और माताने उनका अति शीघ्र और उचित उत्तर किया । उसकी बुद्धि स्वभावसे ही नाना प्रश्नोंके उत्तर करनेको समर्थ थी । वह प्रभुको गर्भमें लिये ऐसी शोभती थी जैसी कि मणियोंके द्वारा हारलता शोभती है। स्वभावसे ही तेजशाली उसके शरीरकी शोभा गर्भके तेजसे और भी बढ़ गई थी; जैसे कि स्वभावसे कान्तिमय खानकी शोभा रत्नोंकी कान्तिसे और भी बढ़ जाती है । गर्भके निमित्तसे उसे कभी स्वममें भी कोई दुर्बह पीड़ा न हुई । ठीक ही है कि क्या मनोहर दर्पणमें पड़ा हुआ आगका प्रतिविम्ब उसे जला सकता है ? उसका गर्भ दुर्बह नहीं हुआ था । न उसकी त्रिवलीका भंग हुआ था और न उसके कुचोंके चूचक काले पड़े थे, न उसका मुँह पीला हुआ था और न उसे आलस ही आता था। उसकी हंसके जैसी पहले गति थी वैसी ही अब थी; उसमें कुछ भी फर्क नहीं हुआ था । तात्पर्य यह कि दुःखकी वात तो दूर रही, पर ज्यों ज्यों उसका गर्भ बढ़ता जाता था त्यों त्यों वह उसके लिए सुखकर होता जाता था।
इस प्रकार धीरे धीरे आनंद-चैनसे जब नौ महीना पूरे हो गये तव सावन सुदी छटके दिन, चित्रा नक्षत्रमें, उस महादेवी शिवादेवीने पुत्र-रत्नको जन्म दिया: जैसे पूर्वदिशा सूरजको जन्म देती है । पुत्र जन्मसे ही तीन ज्ञानका धारक था और गुणोंका पुंज था। प्रभुके जन्म-समय मंद मंद सुगन्धित वायु चल रही थी। पृथ्वी धूल-रहित दर्पणकी नॉई निर्मल हो गई थी। खिले हुए नील कमल उसके रोमाञ्चके जैसे जान पड़ते थे । भगवानका जन्म होते ही एकाएक देवतोंके आसन कंपित हो उठे । उनके मुकुट अपने आप नम गये । एवं बिना बजाये ही