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बारहवाँ अध्याय।
१८१ चिके अक्षर विना भोग्य पदार्थको कहनेवाला हो और अन्तके अक्षरको छोड़ देनेसे वही पीने और रक्षण अर्थमें जो धातुयें हैं उनसे निष्पन्न शब्दोंका सम्बोधनका रूप हो जायें।
उत्तर-पा, अर्व, क, पाचक, बैंक ( बगुला ), पाक, प, अव । किसीने पूछा
वसुसंख्या काप्त्यर्थधातुरूपं च किं लिटि।
किं कलत्रं सुवर्ण किं, के कैलाशं वदाशु भोः ॥९॥ अर्थात-वसुको कहनेवाली संख्या कौन है ? प्राप्ति-अर्थवाली धातुका लिट्में क्या रूप होता है ? स्त्रीलिंगका बोधक कौन है ? सोना और कैलाश किसे कहते हैं ?
माताने उत्तर दिया-अष्टे, आप, टाप, अष्टापद, अष्टापद । किसीने कहा
कि निश्चयपदं लोके, कस्तिरचा लघुर्वद।
शुभ. को मोक्षसिद्धयर्थ, को भवेत् सर्वदाहकः ॥१०॥ अर्थात्-निश्चयवाचक पद कौन है ? तिर्यश्चोंमें छोटा कौन है ? मोक्ष सिद्धिके लिए उपयुक्त कौन है ? और सबको जलानेवाली क्या चीज होती है ?
उत्तरमें माताने कहा--, श्वा (कुत्ता), नर (मनुष्य ), वैश्वानर ( आग )। किसीने पूछा--
कृष्णसंबोधनं किं स्या-त्किं पदं व्यक्तवाचकम् । के गर्वाः को विधीयेत, वादिभिर्निगमश्च कः॥११॥
प्रसिद्धोऽथ भुजगेशाह, कारवादकस्तु कः। अर्थात्-कृष्णका सम्वोधन क्या होता है ? व्यक्तको कहनेवाला पद कौनसा है ? गर्व कौनसे हैं ? वादी लोग क्या करते हैं ? प्रसिद्ध निगम ( गॉव) कौनसा है ? भुजंगेश और अहंकारको कहनेवाले कौनसे शब्द हैं ?
माताने उत्तर दिया-अ, हि', मैदा (आठ मदः), चाँद, अहिमैदावाद, अहि, मंद।
इनके सिवा देवियाँ और भी क्रियागुप्त आदिके प्रश्न करती थीं और माना उनका उत्तर देती थी, एकने पूछा कि--
रम्यं काय (१) फलं मातः, सर्वेषां तोषदायकं । जिनचक्रिवलादीना, पदस्य सकलोलतेः॥१॥