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पाण्डव पुराण |
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उठाये हुए की माताके शरीरकी रक्षा के लिए उसके पास पहरा देती थी-वह ऐसी जान पड़ती थी मानों बिजली ही है; कोई चन्दनके जलसे मणिजड़ित भूतलको सींचती हुई ऐसी शोभती थी मानों चंदन वृक्षकी लता ही है; कोई भोग्य वस्तुओं को देनेवाली फूलोंके चौक पूरती थी; कोई पृथ्वीको सोधनेवाली भूमिको साफ करती थी- झाड़ती- चुहारती थी; कोई प्रभुकी माताको खाने के लिए अच्छे अच्छे सब प्रकारके पकवान मोदक, व्यंजन आदि देती; कोई उसके पॉव धोती थी; कोई मुँह देखने के लिए पृथ्वीतल पर आये हुए चन्द्रमाके जैसा उसे दर्पण देती थी; कोई हाथमें पुष्पोंकी माला लेकर प्रभुकी माताके आगे खड़ी हुई ऐसी शोभती थी मानों उसकी सेवा करनेको यहाँ किसी वृक्षकी शाखा ही आ गई है; कोई उसे मुकुट और कोई कुण्डल पहिराती थी; कोई उसके कंठमें हार पहिनाती हुई कल्पवृक्षकी शाखा जैसी शोभती थी; कोई पुष्पोंकी धूल ( केसर ) से भरपूर अत एव सोनेकी धूलसे धूसरित जैसी और जिस पर इधर उधर मोती विखर रहे हैं ऐसी पृथ्वीको साफ करती थी; कोई सुपारी, इलायची, लौंग आदि से सुसज्जित पान देती थी -- वह ऐसी जान पड़ती थी मानों नागवेल ही है; कोई स्वर्गकी गणिका उत्तम हाव-भावोंको दिखाती हुई उसके सामने नृत्य करती थी; कोई उसके मनको आनन्दित करती थी, कोई मनोहर कामधेनुका रूप धर कर प्रभुकी माताको उत्तम उत्तम वस्तु देती थी; कोई माताकी प्रीतिपात्र बनी हुई सुशोभित होती थी; कोई उसके शरीरकी रक्षा करती थी कोई उसके हाथसे वस्तु लेती थी; कोई उसके मनको पुष्ट करती - बढ़ाती थी; कोई उत्तम उत्तम वार्तालाप द्वारा उसके साथ विचार करती थी; कोई उसके मलको स्वच्छ करती थी; कोई उसके मोहभावको उत्तेजना देती थी; कोई चोर आदिके भयसे उसकी आत्माको छुड़ाती थी; कोई रातके समय दैदीप्यमान दीपकों द्वारा उसकी भक्ति करती थी; और कोई सुन्दर सुंदर वस्त्र प्रदान करती थी । तात्पर्य यह कि इन्द्रकी आज्ञासे सव देव- कन्याएँ जिनमाताकी नाना भॉतिसे सेवा-शुश्रूषा करती थीं। इसी प्रकार कुछ देवियों मनुष्यनीका रूप घर कर वहाँ आती और नाना तरहके हाव-भाव विलासके साथ नृत्य कर सब जनों को हँसाती और आनंदमें मन कर देती थीं। देवियाँ जिनमाताकी सेवामें इतनी लवलीन थीं कि वे जिस तरह बनता उसके चित्तको सदा ही खुश रखती थीं । वे कभी, जल-लीलासे और कभी नृत्यके हास-विनोदसे प्रभुकी माताके दिलको रमाती थीं; और शुद्ध मनवाली जिनमाता भी उनकी गीत -गोष्ठी में जाकर उन
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