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________________ F बारहवाँ अध्याय | १७७ है कि तुम्हारे पुत्र होगा। बैल देखनेसे वह संसार भर में श्रेष्ठ होगा। सिंह देखनेसे पराक्रमी, महान वीर्यशाली होगा । माला देखनेसे धर्म- तीर्थका प्रवर्तक होगा अभिषिक्त होती हुई लक्ष्मीके देखनेसे उसका सुमेरुके शिखर पर अभिषेक होगा । पूर्ण चाँद देखनेसे वह संसारको आल्हादित करेगा । सुरज देखने से दीप्तिशाली, भासुर होगा | कुंभ देखनेसे निधियोंका भोक्ता और मछलियाँ देखनेसे सुखी होगा | तालाव देखनेसे नाना लक्षणोंवाला और समुद्र देखनेसे केवलज्ञानी होगा । सिंहासन देखनेसें साम्राज्यका भोक्ता होगा । विमान देखनेसे वह स्वर्ग से आयगा । धरणेन्द्रका भवन देखनेसे अवधिज्ञानका धारक होगा । रत्नराशि देखनेसे गुणोंका आकर होगा । और निर्धूम आग देखनेसे वह कर्मोंको जलानेके लिए आगके तुल्य होगा । वह हाथीके आकारको लेकर तुम्हारे गर्भमें आवेगा और धर्म-रूपी समीचीन रथको प्रवर्तानेके कारण उसका अरिष्टनेपि नाम होगा । wwnn mwanan इस प्रकार स्वमका फल सुन कर शिवादेवी बहुत हर्षित हुई। उसके रोमाश्च हो आये । हर्षसे उसका चित्त गद्गद हो गया। इसके बाद कार्तिक सुदी छटके दिन, पिछली रातमें, उत्तराषाढ़ नक्षत्र में, शिवादेवीने गर्भ धारण किया। उस समय प्रभुको गर्भ में आया जान कर अपने अपने चिन्ह सहित देवता गण आये और गर्भकल्याणकका उत्सव करके अपने अपने स्थानको चले गये । प्रभु जबसे गर्भमें आये तभी से लेकर इन्द्रकी आज्ञा से छप्पन दिक्-कुमारियों उनकी माताकी सेवा करती थीं । वे गर्भ-समयके योग्य क्रियाओं द्वारा सेवा करने में बहुत ही दक्ष थीं। श्रीदेवीने प्रभुकी माताको श्री दी और ही देवीने त्रपा ( लाज ) दी। धृति देवीने धैर्य दिया और कीर्ति देवीने कीर्ति दी। एवं बुद्धि देवीने बुद्धि दी और लक्ष्मी देवीने सौभाग्य दिया। सारांश यह कि उक्त छह देवियोंने मञ्जुकी माताको उक्त छह गुण दिये । इनके सिवा कोई शिवादेवीकी आँखों में अंजन ऑजती थी; कोई पान लगा कर देती थी; कोई मंगलगीत गाती थी; कोई उसके शरीरका संस्कार करती थी; कोई रसोई बनाती थी; कोई कोमल वस्त्रोंकी शय्या बिछाती थी; कोई उसके पाँव दावती थी; कोई उसके बैठने के लिए मनोहर सिंहासन पर गद्दी तकिया वगैरह डालती थी; कोई पुरंध्रीकी नॉई सुगन्ध द्रव्य चन्दन, कर्पूर वगैरहका लेप करती थी; कोई उसके आभूषणोंको लिए खड़ी हुई ऐसी मालूम पड़ती थी मानों दीप्तिके पूरसे विभूषित कल्पलता उसे भूषण ही दे रही है; कोई उसे रेशमी वस्त्र देती थी: कोई फूलोंकी गूँथी हुई मालाऍ देती हुई वेलसी जान पड़ती थी; कोई तलवार पाण्डव-पुराण २३
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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