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________________ बारहवाँ अध्याय ! १७५ सरसीमें आवर्त होते हैं, वह भी शंख, चक्र आदि चिह्न-रूप आवर्तवाली थी। सरसीमें मछलियाँ होती हैं, उसमें भी रोपराजि-रूप मछलियाँ थीं । सरसी हाथियोंकी केलिसे शोभित होती है, वह भी कामदेव-रूप हाथीकी केलिसे सुशोभित थी । उसके दुर्गम पहाड़ोंकी नॉई कुच थे । वे ऐसे जाने जाते थे कि मानों कामी पुरुषों के काम-भूपको रहने के लिए किले ही बनाये गये हैं । उसका मुख ठीक चन्द्रमाके समान था और उसके ललाटके ऊपरी भागमें सुन्दर बाल विखरे हुए थे; जान पड़ता था कि उसकी मुखच्छविको देख कर उसको असनेकी इच्छासे राहु ही आ गया है । उसके दोनों कान सोनेके भूषणोंसे विभूषित थे और शास्त्र सुननेसे जो संस्कार होता था उसके सम्बन्धसे वे संस्कृत थे । इस तरह वे दम्पती आनंदसे सुख भोगते थे और अपनी उत्तम बुद्धिसे प्रभासुर हुए अपूर्व शोभा पाते थे। एक समय सौधर्म इन्द्रने अवधिज्ञानसे जिनदेवके गर्भागमनको जान कर छह महीने पहलेसे ही रत्नोंकी वरसा करनेके लिए वहाँ कुवेरको भेज दिया। धर्मबुद्धि कुवेरने भी इन्द्रकी आज्ञानुसार प्रभुके गर्भमें आनेके छह महीने पहलेसे जन्म तक-पंद्रह महीने-वरावर रत्नोंकी वरसा की । आकाशसे गिरी हुई उन दिव्य रत्नोंकी वरसा ऐसी जान पडती थी मानों जिन-माताको देखनेके लिए स्वर्गकी लक्ष्मी ही आ रही है। या यों कहिए कि सारे आकाशको घेर कर पड़ती हुई वह रत्नोंकी वरसा ऐसी शोभती थी मानों जिनमन्दिरको देखनेकी इच्छासे ज्योतिषी देवतोंकी पंक्ति ही आ रही है । रत्नोंकी बरसासे, भगवानके महलका आँगन परिपूर्ण हो गया था। उस महलके शिखरों पर सोनेके कलश जड़े हुए थे । उसे देख कर लोगोंसे यही कहते बनता था कि यह सब धर्मका फल है। एक दिन शिवादेवी शय्या पर सुखकी नींद सोई हुई थी। रातका पिछला पहर था। उस समय उसने सोलह स्वप्नोंको देखा । वे स्वम ये थे । ऐरावत हाथी बैल-जो खूब मदोन्मत्त उन्मत्त स्कंघवाला और सुधाके पिंड जैसा सफेद था, चन्द्रमाकी छायाके जैसा मृगेन्द्र (सिंह)-जो छलांग मारता हुआ और जिसकी लाल कंधरा थी, लक्ष्मी-जिसका कि कमलयुक्त कुंभों द्वारा दो हाथी अभिषेक कर रहे थे; दो मालायें-जिन पर फूलोंकी सुगंधसे भौरे आकर गूंजते थे; चॉदै--जो तारोंसे युक्त और शिवादेवीके मुख-कमलके तुल्य था; सूरजजो अंधेरेको दूर करनेवाला और सोनेके. कलश सरीखा था। सोनेके दो कुंभ
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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