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________________ बारहवाँ अध्याय। १७३ निमित्तकुशल नाम निमित्तज्ञानीको पूछा कि सत्यभामा किसकी वल्लभा होगी। नैमित्तिकने उत्तर दिया कि वह तीन खंडके स्वामी कृष्ण नारायणकी पट्टरानी होगी। यह जान कर सुकेतुने दूतके हाथ भेंट वगैरह भेज कर सत्यभामाका कृष्णके साथ व्याह कर दिया। इसके बाद वह तो ससारसे विरक्त हो गया और कृष्ण नारायण सत्यभामाको पाकर सांसारिक सुख भोगने लगा। इसी समय उग्रसेन राजाको मथुराका राजा बना कर कृष्ण-सहित सबके सब यादव सौरीपुर चले आये। इसके बाद जीवधशा नाम अपनी पुत्रीके मुंहसे राजगृहके राजा जरासिंधने जव कंसका मरण सुना तब उसे यादव लोगों पर बड़ा भारी क्रोध आया । उसने उसी समय यादवोंके साथ युद्ध करनेको अपने पुत्रोंको भेजा । परन्तु वे यादवोंके दैव और पौरुपके मामने ठहर न सके-सब नष्ट हो गये। यह देख कर जरासिंधक क्रोधका कुछ पार न रहा । तब उसने तीनसौ छियालीस योधाओंको साथ देकर, यादवोंको तहसनाश करनेके लिए, अपराजित नाम अपने बड़े पुत्रको भेजा। लेकिन यादवोंकी शरताके सामने उसकी भी कुछ न चली-वह भी युद्ध-स्थलकी वलि हो गया । इस दुःख-मय समाचारको सुन कर तो वह दुद्धर्ष वीर स्वयं ही फवच वगैरह पहिन कर तैयार हुआ और यादवोंके साथ लड़नेको गया । कंसको आया सुन कर यादव लोग बड़े डरे और वे सौरीपुर तथा मथुराको भाग गये । यह देख जरासिंघने उनका पीछा किया, परन्तु देवोंने मायाके द्वारा जरासिंधको तो पीछा लौटा दिया और यादवोंको पच्छिम दिशामें सुदूर समुद्रतट पर भेज दिया। इसके बाद मनस्वी कृष्ण नारायणने समुद्र मार्ग पानेकी इच्छासे जैसी विधिसे होने चाहिए, आठ उपवास किये । पुण्योदयसे उसके पास नैगम नाम एक देवने आकर कहा कि भोगियों-साँपों-को मर्दित करनेवाले निर्भय प्रभो, आप इस अश्व-भेष-धारी देव पर सवार होकर समुद्रमें जाइए वहाँ आपको स्थान मिलेगा । यह सुन कर नारायणने वैसा ही किया-वह समुद्रमें गया । उस समय समुद्रका जल उसके लिए स्थलके जैसा हो गया । सारांश यह कि समुद्रमें जहाँसे नारायण जाता था वहाँका जल इधर उधर दोनों ओरको हटता जाता था । नारायण शान्तिके साथ वहाँ पहुँचा जहाँ कि इन्द्रकी आज्ञासे कुबेरने नेमिनाथ प्रभु के लिए वारह योजन-अड़तालीस कोशकी-लम्बी-चौड़ी नगरी
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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