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पाण्डव पुराण।
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हुआ आकर दैवयोगसे मेरे हाथ लग गया था और इसीमें मैंने इसे पाया था। इस लिए जन्म देनेवाली तो इसकी यही माता है, पर पालने-पोपनेके लिहाजसे देखा जाय तो मैं भी माता हूँ। मैने इसका कंस नाम रक्खा है । परन्तु । इस मंजूषामें इसके साथ एक पत्र और मिला था। उसके वाँचनेसे मालूम हुआ कि यह उग्रसेन राजा और पद्मावती , रानीका पुत्र है । मंदोदरीके अन्तिम वचनोंसे जरासिंधको संतोष हुआ और उसने हर्षित होकर उसे आधे राज्यके साथ अपनी कन्या ब्याह दी।
. ____ इसके बाद कंस, पितासे अपने वैरका बदला लेनेके लिए बहुतसी सेना सहित मथुरा आया और क्रोधके वश हो, माता-पिताको वाँध कर उसने शहरके 'दरवाजे में कैद कर दिया । कंसकी वसुदेव पर बड़ी भक्ति हो गई थी, अत एव उसने वसुदेवको अपने यहीं बुला लिया।
मृगावती देशमें दशार्ण नामएक नगर है । वहाँका राजा देवसेन था और उसकी रानीका नाम था धनदेवी । वह इन्द्रकी इन्द्राणी जैसी थी। उनके एक पुत्री थी। उसका नाम था देवकी । उसका कोयलके जैसा सुंदर स्वर था। वह बहुत ही अच्छा आलाप लेती थी। कंसने बड़े भारी आग्रहसे देवकी वसुदेवके लिए दिलाई थी।
___ इसके बाद क्रमसे वसुदेवके निमित्तसे देवकीके तीन बार दो दो करके छह पुत्र पैदा हुए; और वाद सातवाँ पुत्र कृष्ण पैदा हुआ।कृष्ण वड़ा पराक्रमी था। कृष्णका जन्म होते ही वसुदेव वलभद्रकी सलाहसे, कंसके भयके मारे, गोकुलमें नंदगोप और यशोदाके यहाँ गये और वहाँ कृष्ण नारायणको इस लिए छोड़ आये कि जिसमेंनिर्भीकतासे उसका पोषण हो । कृष्णका नंदगोपके यहाँ बड़ी अच्छी तरह पालन होता रहा । वह थोड़े ही दिनमें खूब हुशियार हो गया। वह बहुत ही बुद्धिमान था। इसके बाद वह चाणूर और कंसका निग्रह करके पूर्ण सुखके साथ रहने लगा।
___ रूपाचल पर्वत पर एक स्थनूपुर नाम पुर है । वहाँका सुकेतु नाम राजा था । उसकी प्रियाका नाम था स्वयंप्रभा । वह सुकेतुको वहुत ही प्यारी थी और अपने रूप-सौन्दर्यसे खूब सुशोभित थी । उसके एक पुत्री थी । उसका नाम था सत्यभामा । वह सुभामा थी-सुन्दर कान्ति और श्रीवाली थी । वह अपने रूपसे इन्द्राणीको भी नीचा दिखाती थी । उसको ऐसी सुन्दरी और कान्तिवाली देख कर उसके पिता सुकेतुनें