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________________ १७१ wwwwwwwwwwwwwimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm चारहवाँ अध्याय। मिल कर परम भीतिको प्राप्त हुआ । पश्चात् सब भाइयोंने बड़े हर्षके साथ वसुदेवका व्याह-महोत्सव किया । अनन्तर प्रौढ़ रागरंगसे वे दोनों दम्पती सुखचैनसे सुख भोगने लगे। एक दिन शुभ स्वमोंको देखनेके बाद रोहिणी देवीने शुक्र स्वर्गसे चय कर आये हुए एक उन्नत देवको गर्भ धारण किया और क्रमसे जब नौ महीना पूरे हो गये तब बलभद्र नामके नवमें वलदेवको जन्म दिया । बलभद्र रूपशाली और जगतको आनंद देनेवाला था। इसके बाद गंभीर आशयवाले वे सब यादव वसुदेव-सहित सुखसे मरीपुरमें रहने लगे। एक दिन जरासिंघको देखनेकी इच्छासे विदांवर वसुदेव वीर कंसके साथ राजगृह नगर आया । वहाँ इसी समय जरासिंघने सव राजोंके लिए यह आज्ञा निकाली थी कि जो कोई नृपति सुरम्यदेशके पोदनापुरके राजा सिंहस्थको वॉध कर मेरे आगे ले आयगा उसे मैं कलिंदसेनाके गर्भसे उत्पन्न हुई जीवधशा नाम अपनी पुत्रीके साथ साथ आधे राज्यका स्वामी बना दूंगा । सारांश यह कि जो सिंहरथको पकड़ ले आयगा उसे मैं अपना आधा राज्य दूंगा और उसके साथ अपनी पुत्री भी व्याह दूंगा। इस आज्ञाको पाकर और राजा लोग तो चुप-चाप अपने घर पर ही बैठे रहेकिसीकी हिम्मत सिंहरथको वाँध लानेकी न हुई । परन्तु वसुदेवसे न रहा गया । वह जरासिंघके आज्ञापत्रको पाते ही उसी समय कुछ सेनाको साथ लेकर कंस सहित वहाँसे निकल पड़ा और विधा-वलसे सिंहोंका स्थ बना, उस पर चढ़ वातकी वातमें उसने सिंहरथको बॉध लिया और लाकर जरासिंधको सौंप दिया। तब जरासिंघ अपनी प्रविज्ञाके अनुसार उसे कन्या और आधा राज्य देनेकी व्यवस्था करने लगा। परन्तु वसुदेवने पुत्रीको कुलक्षणा जान कर जरासिंघसे कहा कि शत्रुको मैंने नहीं बॉधा है। किन्तु वाँधा है मेरे इस मित्रने । इस लिए आप इसको ही पुत्री दीजिए । यह सुन जरासिंध मन-ही-मन सोचने लगा कि यह कौन है । इसका नाम क्या है और न जाने इसका कुल कैसा है । इसके वाद उसने कंससे पूछा कि तुम्हारे माता-पिता कौन हैं ? कंसने उत्तर दिया कि नाथ, मैं मन्दोदरीका पुत्र हूँ। यह सुन कर मरासिंधने मंदोदरीको बुलाया । वह अपने साथमें एक सन्दूक लेकर आई और उस सन्दूकको राजाके आगे रख कर बोली कि महाराज, यह यमुनाके प्रवाहमें वहता
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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