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बारहवाँ अध्याय। हुए शहरसे निकलते हैं, उस समय आपके रूप-सौन्दर्यको देख कर शहरकी नारियोंका चरित्र शिथिल हो जाता है । वे कामदेवका ग्रास बन जाती हैं और लान-शर्म छोड कर विपरीत चेष्टायें करने लगती हैं। कन्या, सधवा और विधवा सभी ऐसी देख पड़ने लगती हैं मानों उन्होंने मदिरा ही पीली है । यह देख कर शहरके लोगोंने राजासे प्रार्थना की और राजाने ही उनकी प्रार्थना परसे आपको उद्यान जानेसे रोक दिया है।
निपुणमतिके इन वचनोंसे वसुदेवने अपने आपको बन्धनमें पड़ा समझा। इसके बाद एक दिन रातको किसी विद्या साधनेके बहानेसे घोड़े पर चढ़ कर राजकुमार नगरसे वाहिर निकल गया। • वह वहॉसे सीधा मसान भूमिमें पहुंचा । वहाँ उसने एक मुर्देको अपने सब वस्त्र-आभूषण पहिना दिये और वाद उसे जला कर आप . आगे चल दिया। धीरे धीरे वह विजयपुर पहुंचा । वह बहुत थक गया था, इस लिए अपनी थकावट दूर करनेको वहाँ एक अशोक वृक्षके नीचे बैठ गया।
वहाँ मगध देशके राजाकी ओरसे एक भील रहता था। दैवयोगसे इसके वहाँ पहुँचते ही भीलको निमित्तज्ञानीके बताये हुए निमित्तकी सूचना मिली । अतः वह राजाके पास गया और उसने राजाको वसुदेवके आनेकी खबर की । राजा उसी समय वहॉ आया और वसुदेवको बड़े भारी ठाट-बाटके साथ नगरमें लिवा , ले गया । इसके बाद उसने उसके साथ अपनी स्तोमला नाम पुत्रीका ब्याह कर दिया । ब्याहके बाद कुछ दिनों तक कुमारने वहीं विश्राम किया । पश्चात वहॉसे चल कर वह पुष्परम्य नाम वनमें पहुँचा । वहाँ एक वनेले हाथीको मद-रहित कर-उसका मद उतार घर-वह आनंद-चैनसे उसके साथ क्रीडा करने लगा । वन-गजके साथ क्रीड़ा करता हुआ उसको देख कर एक विद्याधर विजयाई पर्वतके किन्नर गीतपुरमें ले गया। वहाँ अशनिवेग और पवनवेगाकी पुत्री श्यामाके साथ उसका ब्याह हो गया । श्यामाका दूसरा नाम शाल्मलिदत्ता भी था। श्यामाके साथ कामक्रीड़ा करता हुआ कुछ दिनों तक वह वहीं रहा; परन्तु एक दिन उसे वहाँसे रातके समय एक दुष्ट अंगारक नाम विद्याधर हर ले गया । यह देख श्यामा तलवार लेकर उसके पीछे पीछे भागी । तब अंगारक डरा और श्यामाके डरके मारे उसने वसुदेवको आकाशसे नीचे छोड़ दिया । यह देख श्यामाने पर्णलध्वी विद्या भेजी । उसने जाकर जिनदेवको
पाणव-पुराण २२