SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५७ ग्यारहवाँ अध्याय । त्रिवर्ग-सेवी पुत्र मिलते हैं; शिक्षा पाये हुए, अच्छे मार्गसे चलनेवाले, स्वामी की भक्तिमें लीन और अच्छे संस्कारोंवाले उत्तम नौकरोंकी नॉई उत्तम उत्तम घोड़े ' मिलते हैं; एवं उन धीरजधारी, समर्थ, धर्मात्मा पुरुपोंको चक्राके संगमसे चीत्कार शब्द करनेवाले बहुमूल्य रथ भी स्वयमेव आकर प्राप्त होते हैं । इसी तरह धर्मके प्रभावसे मनुष्योंको हार, कुंडल, केयूर, अंगूठी, कंकण आदि भूपण और सुन्दर सुंदर वस्त, तांबूल, कपूर आदिकी प्राप्ति होती है । और सुन्दर सुन्दर खिड़कियोंवाले, पहरेदार्गेसे रक्षित, अक्षय और भॉति भॉतिके उत्सवोंसे परिपूर्ण महल-मकानोंकी भी प्राप्ति होती है । देखो, धर्मका ऐसा बड़ा और मनोहर फल मिलता है । इस लिए चतुर पुरुषोंको निर्मल चित्त हो धर्म सेवन करना चाहिए और उसके फलका अनुभव लेना चाहिए । इसके बाद निर्भय हो पृथ्वी पर घूमता फिरता वली भीम सॉपके साथ क्रीडा करनेवाले और चंचल-चित्त कौरवोंके साथ इसी तरहका क्रीडा-विनोद करता रहा। एक दिन उन मायाचारी कौरवोंने विप-कण उगलते हुए साँपसे गीमको कटवा दिया। पर भीपके पुण्य-प्रमावसे उस सॉपके विपका उसके शरीर पर कुछ भी असर न हुआ; वह विप उसके लिए अमृत तुल्य हो गया-उसकी उसे रंचमान भी वेदना न हुई। इसके बाद एक दिन गांगेय, द्रोणाचार्य, पांडव और कौरव सब मिल कर क्रीड़ाके लिए वनमें गये । वहाँ वे सोनेके दंडों द्वारा, सोनेके तारोंसे अतीव सुन्दर गुंथी हुई गेंदसे खेलने लगे । उस समय वे ऐसे जान पड़ते थे मानों दूसरे देवता-गण ही हैं। और पूर्ण चॉदके जैसी गोल गेंद भी दंडोंसे ताड़ी गई पृथ्वी पर इधर उधर दुलकती हुई ऐसी जान पड़ती थी मानों वह राजा लोगोंके भयसे ही इधर उधर भागती फिरती है । इस प्रकार खेलते हुए उनमेंसे किसीके दंडेसे गेंद एक बार बहुत उछली और जाकर एक ऐसे अंधकूपमें जा पड़ी जो सीढ़ी रहित था और अथाह एवं रमणीक जलसे भरा हुआ था । उसको उस अगाध अंधकूपमें पड़ती हुई देख कर चिल्लाते हुए वे सव लोग उस कुँए पर गये और उन्होंने कहा कि हम लोगोंमें कोई ऐसा शक्तिवाला भी है जो इस कुँएमसे गेंदको निकाल लावे । यह सुन कर उनमेंसे विना विचारे किसी वाचालने कहा कि पातालमें गई हुई इस गेंदको मैं बहुत जल्दी ले आ सकता हूँ | किसीने कहा कि महाराज, इसकी तो बात ही क्या है मै इससे भी
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy