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- ग्यारहवाँ अध्याय ।
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दुःखके मारे रोने लगे । भीमके हाथों उनकी बड़ी दुर्दशा हुई । अन्तमें वे केश सहते हुए पुण्यके उदयसे, जैसे तैसे पानीसे बाहिर आ गये और बड़े भयभीत हुए अपने अपने महलोंको गये ।
इसके बाद भीमसे भयभीत होकर बुद्धिशाली दुर्योधनने अपने धीरवीर मंत्रियों और छोटे भाइयोंको बुला कर उनके साथ परामर्श किया कि देखो, भीम बड़ा दुर्जय है, धीरवीर और शत्रुओंको जीतनेवाला है, इसकी भुजाएँ बड़ी बलिष्ठ है, वह भयको देनेघाला और युद्धकी प्रतिज्ञा किये हुए है, सब तरह समर्थ है, बल-सम्पन्न और शौर्यशाली है, उसकी बुद्धि वड़ी गंभीर है, वह वैरियोंके ध्वंसके लिए हमेशा ही उद्यत है और नाना युक्तियोंका ज्ञाता है । बड़े खेदकी बात है कि इस . महाभीम भीमके जीते रहते हम सौ भाइयोंका जीवन व्यर्थ ही है । इस लिए इस महान् उत्कट दुरात्माको जिस उपाय या कपटसे बन पड़े हम लोगोंको मार ही डालना चाहिए । देखिए तो इसके मारे हम लोगोंको कितना भय हो रहा है । इसको मारे विना हमारे दिलका सन्ताप मिट ही कैसे सकता है । एक बात यह है कि इसके रहते हम लोग राज्यका पालन भी नहीं कर सकेंगे । इस लिए इसका जल्दी ही इलाज कर देना योग्य है । क्योंकि वैरी बढ न पावें इसके पहले ही उसकी जड़ उखाड़ फेंक देनी चाहिए; नहीं तो वह बढकर रोगकी नॉई बल (ताकत-सेना) का ध्वंस कर देगा । जैसा कि कहा है-व्याधि, चोर, शत्रु-समूह, दुष्ट पुरुष, आपत्ति
और दुर्दम भीति इनको पैदा होते ही नष्ट कर देना चाहिए; नहीं तो ये बढ़ जाने पर दारुण दुःख देते हैं; उदाहरण यह कि शरीरमें विष चढ़ जाने पर जैसे दुःखदाई हो जाता है वैसे ही ये भी बढ़कर जीवको साता नहीं होने देते; किन्तु दुःखदाई हो जाते है । इस लिए इस भयंकर भीमको हमें अति शीघ्र मार डालना चाहिए; नहीं तो यह आगकी नाई बढ़कर हमें जला देगा-हमारे कुलका नाश कर देगा। इस प्रकार मंत्रियों के साथ सलाह करके खोटे विचारोंवाला दुर्योधन भीमको मारनेके लिए उद्यम करने लगा।
एक समय जव कि भीम सोया हुआ था, उसे सोया जान कर स्नेह-हीन दुर्योधनने कपटसे बॉध लिया; और रोषमें आकर गंगाके प्रवाहमें बहा दिया। भीम उस हालतमें भी सुखसे सोकर उठने की तरह जाग्रत हुआ । उसने जान लिया कि यह सब दुर्बुद्धि दुर्योधन हीका कर्म है । वह बंधन तोड़ कर, हाथोंको