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________________ १५४ पाण्डव-पुराण । . इसके बाद एक समय भीम फिर भी कौरवोंके साथ उसी वृक्षके पास गया । अवकी वार जैसे तैसे करके कौरव-गण उसके ऊपर तक चढ़ गये । तव भीमने उस वृक्षको अपनी छातीके वल हाथोंसे पकड़ कर खूव ही . हिला डाला और बड़े अभिमानके साथ उसे जड़से उखाड़ कर कौरवों सहित सिर पर उठा वह भागा । उस समय ऐसा जान पड़ता था कि मानों वह अपने मस्तक पर छत्र ही लगाये हुए है । भीमकी इस दौड़के मारे कौरव लोग उस वृक्ष परसे नीचे गिर पड़े। कोई ऊपरको मुंह किये सीधा गिरा तो कोई नीचेको मुँह किये उल्टा । कोई पॉवोंसे डालियों पर झूम कर सिरकी ओरसे लटका रहा तो कोई हाथोंसे डालियों पर झूम कर सीधा ही लटक कर रह गया । कोई डरके मारे शाखासे चिपट कर सोया सा रह गया तो कोई एक हाथसे डाली पकड़े झूमता ही रह गया । कूद पड़नेसे किसीके पेटमें पीड़ा होने लग गई तो किसीको मूर्छा आ गई, जिससे वह मरणके नजदीक पहुँचनेको हो गया। भीमके इस कार्यसे वे लोग बड़े दुःखी हुए । जान पड़ता था कि मानों भीमके पुण्यके डरसे ही वे व्याकुल हो रहे हैं। तब हाथ जोड़ कर बड़ी नम्रतासे उनमेंसे एकने भीमसे प्रार्थना की। भीम, तुम पवित्र आत्मा हो, गंभीर हृदयवाले हो । अतः परिवारके लोगोंको तकलीफ पहुँचाना तुम्हें शोभा नहीं देता । इस प्रकार मार्थना करने पर भीम उसी समय ठहर गया और उसने घबराये हुए कौरवोंको बड़ा आश्वासन दिया-धीरज बंधाया। इसके बाद वे सब अपने अपने घरोंको आ गये । वहाँ उन सबके साथ भीम जिसकी कि पुरुषार्थसे शोभा थी और जो बड़ा पराक्रमी था, सतत क्रीड़ा करता हुआ आनन्द-चैनसे अपना समय बिताने लगा। एक दिन कौरव किसी बहानेसे भीमको एक तालाव पर ले गये और वहाँ उन मूल्ने मार डालनेकी इच्छासे उसे पानीमें ढकेल दिया । परन्तु वह बली पुण्यात्मा पानीमें न डूवा-वह तैरना जानता था, अतः अपनी भुजा ओंके बल तालावको पार कर किनारे आ गया । उसको तैर कर पार आया देख कौरव बड़े घवराये-उनका मान गल गया और वे सोचने लगे कि अव क्या करना चाहिए। इसके बाद कौरवोंको पानी में डुबा देनेकी इच्छासे धीर-वीर भीम भी एक । बार उन्हें भुला कर तालाव पर ले आया और उन्हें उसने तालावमें गिरा दिया। उस समय दीन स्वरसे पचाओ, रक्षा करो इत्यादि कहते हुए कौरव-गण पानीमें डूबने लगे और बड़े दुःखी हुए; और जलकी तरंगोंके सहारे डूबते उतरते हुए
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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