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ग्यारहवाँ अध्याय ।
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इधर थोडे ही दिन बाद गांगेयने दुर्योधनादितथा वीर युधिष्ठिरको राज्य दे दिया। युधिष्ठिर न्यायका ज्ञाता था, अतः वह न्यायसे पृथ्वीको पालता और धर्मका प्रचार कर • लोगोंको धर्मात्मा वनाता था । उसके राज्य कालमें चोर ये दो अक्षर केवल शास्त्रमें
ही सुने जाते थे और कहीं नगर-गाँवमें इनका प्रवेश न था। उसके राज्य करते समय किसीको किसी तरहका भय न था, सब निर्भय रहते थे परन्तु युवा पुरुष कामनियोंके क्रोधसे जरूर डरते थे-वे कभी उन्हें नाराज नहीं करते थे। उसके समयमें किसी भाग्यशालीकी लक्ष्मी नहीं हरी जाती थी । हॉ, वायु फूलोंकी सुगंधको अवश्य हरती थी और लोगोंके चित्तोंको प्रसन्न करती थी । उसके शासन-कालमें परपरमें कोई किसीको मारता न था । यदि कोई मारनेवाला था तो यम अवश्य था वह जरूर लोगोंको मारता था । वह सुपात्रोंके लिये दान देता था और उनसे मधुर शब्दों में वोलता था । वह परोपकारी था, दूसरोंके अनेक काम कर देता था । इसके सिवा वह लोगोंको यथायोग्य आदर-सत्कारसे संतुष्ट करता था । वह जिनेन्द्रदेवकी भक्तिभावसे पूजा-अर्चा करता था। काम, क्रोध आदि छह वैरियोंको जीतनेके लिये वह सदा उद्यत रहा करता था । वह दया सागरके पार पर पहुँचा हुआ था, परमार्थका ज्ञाता और क्षमाका भंडार था। अत: वह योगी सा सुशोभित होता था।क्योंकि योगी भी परमार्थका ज्ञाता और क्षमाका भंडार होता है।
द्रोणाचार्य इन सव पांडवों और बली दुर्योधनादिके श्रेष्ठ गुरु थे । उन्होंन इन सबको धनुर्वेद, वाण छोडना, लक्ष्य वाँधना और धनुप खींचना आदि सिखाया। पर इन सवमेंसे अर्जुनने ही सार्थक धतुर्वेद-विद्या सीख पाई; क्योंकि वह समर्थ था-योग्य पात्र था। और है भी ऐसी ही बात कि पुण्योदयसे मनुष्योंको वडी जल्दी विद्या आ जाती है । अर्जुन द्रोणाचार्यका बड़ा भक्त था, उनकी वह बहुत सेवा करता था। उस सेवाके प्रभावसे ही वह पूर्ण धनुर्वेदविशारद हो गया। सच है कि गुरु-सेवा सब मनोरथको साधनेवाली होती है। अर्जुनकी इस निष्कपट सेवासे द्रोणाचार्य अर्जुन पर बहुत प्रसन्न थे और इसी लिए उन्होंने उसे पूर्ण धनुष-विद्या सिखा दी थी। सच है कि गुरु-भक्ति मनकी
आशाको पूरा कर देती है । अर्जुनने अपनी धनुष-विद्याके वलसे और सबकी विद्याको विफल कर दिया था, अतः वह उन सबके वीचमें ऐसा शोभता था जैसा कुलाचलोंके बीचमें सुमेरु शोभता है । अर्जुनके सिवा और और पांडवों तथा कौरवोंने भी द्रोणाचार्यसे अपने अपने क्षयोपशमके अनुसार यथायोग्य धनुर्वेदको सीखा-धनुष-विद्याका अभ्यास किया। वे धनुर्विद्या-विशारद विद्वान्