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दसवाँ अध्याय।
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वैरियों पर विजय पा ली है । हे प्रभो, इस सम्बन्धमें मैं यह पूछना चाहता हूँ कि जरासंधका मरण सहज ही होगा या किसी वैरीके द्वारा ? भगवन, कृपा कर आप मेरे इन प्रश्नोंका उत्तर दीजिए, जिससे कि मुझे उक्त बातोंका निश्चय हो जाय । आप इनके समझानेको सर्वथा समर्थ है । क्योंकि आपके दिव्यज्ञानसे कोई भी चीज वाहिर नहीं है । यह सुन मुनिराज बोले कि विशुद्ध बुद्धिवाले राजन् धृतराष्ट्र, मैं तुम्हारे मनकी सव बातोंको कहे देता हूँ, तुम धीरजके साथ सुनो । इस राज्यकै कारण दुर्योधन आदिमें और पांडवोंमें खूब विरोध होगा
और लडाई होगी । तुम्हारे पुत्र दुर्योधन आदि कुरुक्षेत्रके युद्धस्थलमें मरेंगे वहॉ और भी अनेक योवाओं की मृत्यु होगी । और पांडव-गण' निर्भय हो आनन्दके साथ हस्तिनापुरमें जा इन्द्रकी नॉई पृथ्वीका पालन करेंगे।
और तुमने जो नाना दुःखोंको देनेवाला जरासंघका मरण पूछा है उसे भी ध्यान देकर सुनो । कुरुक्षेत्रमें ही कृष्णनारायणके साथ जरासंधका युद्ध होगा
और वहीं कृष्णके हाथ से उसकी मृत्यु होगी । यह हाल सुन धृतराष्ट्रको बडी चिन्ता हुई और उसकी इस चिंताने सारे देशको भी चिंतामें डाल दिया । इसके वाद धृतराष्ट्र योगीन्द्रको नमस्कार कर नगरको चला आया । नगर ललनाओंके चंचल नेत्रोंसे सुशोभित था और मनुष्योंकी रक्षा करता था।
___ श्री और गांधारी देवीसे विभूषित धृतराष्ट्र इस प्रकार शास्त्रका पवित्र उपदेश सुनकर अपने श्रेष्ठ गुणोंके द्वारा कामके कलंकको दूर करनेमें लगा । उसने अपने ऐश्वर्यसे वैरियोंका ध्वंस कर दिया था और इसी निमित्तसे उसका पुण्य विकसित हो उठा था। वह लोगोंमें सुगण्य और गुणोंका पिटारा था, दयाका अवतार था। उसकी बुद्धि बहुत ही सुंदर थी । वह धृतराष्ट्र कौरवोंके कुलको पढ़ाता हुआ अत्यन्त शोभा पाता था।
धर्मराज युधिष्ठिर नीतिमार्ग पर चलते हैं, अतएव धर्मसे उन्हें लक्ष्मी प्राप्त है । वह धर्मके लिए ही हमेशा उत्तम उत्तम आचरणोंको करते है क्योंकि धर्मसे ही जीवोंको सब सुख मिलते है । वह विपुल गुणोंके भंडार हैं, धर्ममें धर्म-बुद्धि करते हैं और अधर्मसे सदा दूर भागते हैं । वह राजोंमें श्रेष्ठ राजा है । अतः हे धर्म, तू उस गुण-गणके धारीकी रक्षा कर ।