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दसवाँ अध्याय।
१४३ ... om. nnn . nnnn ram सब दिशाओंमें दृष्टि फैलाता हुआ वह वलको प्राप्त हुआ और सोचने लगा कि यह सब क्या है ? स्वम तो नहीं है ? मैं कौन हूँ ? और मुझे जो ये आ-आकर नमस्कार करते हैं, कौन हैं ? ये नृत्य करनेवाली स्त्रियाँ कौन हैं ? इस प्रकार विचार कर वह क्षणभर चकितसा रह गया । वह फिर विचार करने लगा कि मैं कहाँसे आया हूँ ? और यह कौन स्थान है ? इसको देखकर मेरा मन बहुत ही प्रसन्न हो रहा है, यह क्या बात है ? यह किसका आश्रय है ? और यह शश्या कैसी है ? उसके मनमें इस प्रकारकी उथल-पुथल हो ही रही थी कि उसे उसी समय अवधिज्ञान हो गया, जिसके द्वारा उसने पांडवोंका सव हाल जान लिया; और यह भी जान लिया कि मुझे यह तपका फल मिला है, यह दिव्य है । यह देवतोंका स्थान स्वर्ग है। ये जो नमस्कार करते हैं देव है, और यह देवतोंका विमान है । मधुर बोलनेवाली ये देवियाँ हैं, जो मधुर मधुर गीत गाती और नाचती हैं। ये मणियोंके भूपणोंसे विभूपित अप्सरायें है । सारांश यह कि उसने अवधिज्ञानसे अपनी सब शंकाओका आप ही समाधान कर लिया। अहा ! यह सुन्दर ध्वनिवाली मद्री है। मद्री भी उसी जगह देवी हुई थी यह बात आगे यहीं स्पष्ट हो जायगी।
इसके बाद आज्ञाकारी, नम्र और प्रफुल्ल-चित्त देवता-गण हाथ जोड़ नमस्कार कर उस उन्नत देवसे बोले कि प्रभो, पहले स्नान करके तैयार होइए
और विधिपूर्वक जिनेन्द्रदेवकी भक्तिभावसे पूजा कीजिए । देव, देखिए यह देवतोंका समुदाय आप जैसे स्वामीको पाकर आज कैसा उत्सव मना रहा है। यह सब आपकी सेनाके देव है । यह फहराती हुई धुजाओंसे विभूपित नृत्यगृह है । इसे भी देखिये, यह देखनेके ही योग्य है । प्रभो, यह देखो, ये भाँति भॉतिके आभूषणोंसे सुशोभित नर्तफियाँ कैसा सुन्दर नाच कर रही हैं । हे अमरेश्वर ! आप इस समय इस विभूतिके स्वामी हुए हैं और यह सवआपने देवत्वका फल पाया है । इसलिए अब आप चलिए और योग्य क्रियाओंको कीजिए । उनके कहनेसे उस देवने जो अपने कर्तव्य-कर्म थे वे सब किये । इस प्रकार वह सुखी देव कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न हुए भोगोंको भोगता हुआ सुख-चैनसे अपना समय बिताने लगा। वह भव्य हमेशा भक्तिभावसे सुख-पूर्वक जिनदेवकी पूजा-उपासना किया करता था।
इधर मद्री भी प्यारे पतिके स्नेहसे संसार-देह-भोगोंसे विरक्त हो गई और उसने शुद्ध मनसे पतिदेवके साथ ही साथ संन्यास ग्रहण करनेकी इच्छा की । अपने विचारौके अनुसार वह नकुल-सहदेव इन दोनों पुत्रों तथा कुन्तीको