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________________ १४० पाण्डव-पुराण। ~~ .www. on an or wrincreamwomwwwmarwmvomwwwwwwwwwwwin देख-सोधकर उठाना धरना आदान-निक्षेपणसमिति है । खकार, मल, मूत्र वगैरहको जीव-जन्तु रहित प्रदेशमें क्षेपना प्रतिष्ठापनासमिति है । इस प्रकार उन वाग्मी मुनिने विस्तारसे यतिधर्मको कहा और इसी तरह श्रावकधर्मको भी बताया; और कहा कि यतिधर्मसे मोक्ष और श्रावक धर्मसे स्वर्ग मिलता है । अतः राजन् , तुम इस धर्ममें मन लगाओ। क्योंकि धर्मसे ही स्वर्गसुखकी माप्ति होती है और क्रमसे मोक्ष भी मिलता है । अब तुम्हारी आयु केवल तेरह दिनकी शेष रह गई है, इसलिए तुम सावधान हो जाओ । तुम तो सब जानते समझते हो, चतुर हो, इसलिए बहुत जल्दी विधिपूर्वक धर्मको धारण करो । देखो, विशुद्ध परिणामोंसे जो विधिपूर्वक धर्मको धारण करता है व धैर्यशाली और बुद्धिमान् अपने आत्माको निर्मल बना लेता है । , इस प्रकार मुनिके वचनोंको सुनकर चंचल-चित्त पांडु असाताके कारण संसारसे बहुत डरा और अनन्त जीवनके लिए उत्सुक हो उसने क्षणिक जीवन पर कुछ काल विचार किया । वह सम्पत्तिको विनलीकी नॉई चंचल समझने लगा। इसके बाद स्थिर-चित्तसे मुनिको नमस्कार कर तथा उनकी स्तुति कर वह वहाँसे अपने नगरको चला आया । वह पापसे,बहुत ही डर गया था और इसीलिए उसके हृदयमें मोक्षसे पूरी पूरी, प्रीति हो गई थी। उसने धृतराष्ट्र वगैरहको अपने महल में बुलाया और मुनिके मुख-कमलसे सुना हुआ साराका स्गरा हाल जैसाका तैसा कहा। पांडुके कहे हुए इस सब हालको सुन कुन्ती वगैरह तो इस प्रकार रोने लगी मानों उनके ऊपर वज्र ही टूट पड़ा है, उनके हृदय दहल गये । वे विलाप करने लगीं । उनकी ऑखोंसे अनवरत ऑसुओंकी धारा बह निकली । सभी दुःखमय हो, गई। उन्हें मूर्छा आ गई। इसके बाद वे ऐसी देख पड़ने लगीं मानों उनमेंसे चेतना विदा ही ले गई हो । शीतोपचार वगैरह उपाय किये जाने पर उनमें चेतना आई । परन्तु उनकी चिन्ता तब भी न गई और उसके मारे वे किकर्तव्य विमूढ़सी रह गईं। तात्पर्य यह है कि उस समय वे असाताके सागरमें डूब गई थी। इसके बाद पांडुने उन्हें आश्वासन देकर कहा कि तुम सब सावधान हो मेरे वचन सुनो । इस संसार-चक्रमें चक्कर लगानेवाले ये जीव हमेशा ही जन्म-मरण किया करते हैं । तब उत्पन्न होने और मरण करनेमें तुम दुःख क्यों करती हो । यह क्या कोई नई बात है। देखो कि जिस भरत चक्रवर्तीने तमाम भूमण्डलको अपने बाहुवलसे जीतकर भोगा वह भी जब कालसे न बचा और उसका सेनापति-रत्न जयकुमार-जिसने सारे संसारको जीतकर मेघेश्वर
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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