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दसवाँ अध्याय ।
भोक्ता थे। स्त्रियोंके कटाक्ष-वाणोंके वे कभी लक्ष्य नहीं होते थे। लोग कहते हैं कि पृथ्वीमें बड़ी भारी क्षमा है; परन्तु उनमें उससे भी कहीं चढ़ीवढ़ी क्षमा थी। उन्होंने अपने क्षमागुणसे पृथ्वीको नीचा दिखा दिया था।मोक्ष-रूप अक्षय-क्षेत्रकी उन्हें सदा आकांक्षा रहती थी। उन्होंने पापों पर विजय पा ली थी । प्रतिक्षण कर्माको क्षीण करते हुए उन्होंने इन्द्रियोंको बिल्कुल ही क्षीण कर डाला था । वे दक्ष थे, क्षेमंकर और क्षोभ-रहित थे । उनके वचन पापको हरनेवाले थे । वे साक्षात् भिक्षु थे। बडे बडे राजा महाराजा भी उनके पैरों पडते थे । वे दीक्षित थे, कर्म-शत्रुओंको नष्ट करने के लिए सदा उद्यत रहते थे और बड़े उत्साही थे। इस समय रात बीत चुकी थी और सरजके उदयका समय था, अत: वे अपने शरीरके तेजसे ऐसे जान पडते थे मानों कि सूरज ही हैं । इसके सिवा वे चार प्रकारके संघसे युक्त थे । उन्हें देखते ही पड्डि उनके चरण कमलों में पड़ गया और नमस्कार कर अपने योग्य स्थानमें बैठा । मुनिने धर्मद्धि देकर राजोंके राजा पांडुसे कहा कि राजन्, इस संसार-वनमें जीव हमेशा ही चक्कर लगाया करते है। कहीं कमी भी स्थिर नहीं हो पाते; जैसे अरहटकी घडी कभी भी ठहर नहीं पाती-हमेशा ही चला करती है । इसलिए जो पुण्यके अर्थी है उन्हें सदा धर्म-सेवन करना चाहिए । धर्मके दो भेद है । एक मुनिधर्म और दूसरा श्रावकधर्म । धर्मसे संसार-परिभ्रमण छूट जाना है । पॉच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति यह तरह प्रकारका यतिवर्म है । छह कायके जीवोंकी मन, वचन और कायसे रक्षा करना अहिंसामहावत है । असत्य वचन न बोलकर हित-मित वचन बोलना सत्यमहानत है । अनर्थकारी अदत्त द्रव्यको ग्रहण नहीं करना अचौर्यमहाव्रत है । देवता, मनुष्यनी तिर्यञ्चनी और चित्रामकी स्त्री इन चारोंके त्यागको ब्रह्मचर्यमहाव्रत कहते हैं । चौदह प्रकारके अन्तरंग और दस प्रकारके वाह्य परिग्रहका त्याग करना परिग्रहत्यागमहाव्रत है । रौद्र, पाड़ा, रति, आहार और इस लोक परलोकका विकल्प मनमें न उठाना मनोगुप्ति है । चार प्रकारकी विकथाका न करना वचन-गुप्ति है । चित्र आदिकी क्रियाओं द्वारा कायमें विकार न होने देना कायगुप्ति है । जब सूरज निकल आये और मार्गमें लोग आने जाने लगें तव चार हाथ पृथ्वी सोधकर, जीवजन्तुओंकी दया करते हुए चलना ईर्यासमिति है । कर्कश आदि दस प्रकारके वचनोंका त्याग करना भापासमिति है । छियालीस दोषोंको टालकर निर्दोष • आहार लेनेको ऐपणासमिति कहते हैं । पाछी, कमण्डलु आदि उपकरणोंका .