________________
पाण्डव-पुराण |
१३८
wwwww,
nang
और माया-जालका स्थान है । फिर भी तू रागान्ध होकर इस पर अनुराग करता है; जैसे एक दरिद्री पुरुष मिली हुई निधिको अपने प्राणोंसे भी अधिक प्यारी समझता है | यह कैसा मोह है जो निवारण करते करते भी खोटे कामोंमें जीवोंकी बुद्धि बड़ी जल्दी लग जाती है और अच्छे कामोंमें लगाये भी नहीं लगती । अचकी बात तो यह है कि सज्जनोंकी मति विषयोंको पापके हेतु जानती हुई भी उनमें प्रवृत्ति करती है । मोहकी इस प्रदल चेष्टाको धिकार है । इस मोहसे ही जीव अपने आपको भूल जाते हैं और स्त्रीके घिनावने शरीरमें मोहित हो जाते है 1 जिनके अभिप्राय खोटे हैं, मोहित है, वे असद्वस्तुमें सहद्धि करके उगे जाते हैं। देखो, रावण आदिने केवल परस्त्रीको हरण करने रूप अपने खोटे अभिप्राय हीसे अपना राज खोया और परलोकमें दुर्गति पाई । मोहके निमित्तसे जब जीव मोहित होता है तब उसके हृदय पर दुर्मति अपना असर जमा लेती है और वह भाँति भाँति के विकल्प-जालों में पड़ जाता है । वह विचारता है किं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ ? कहाँ ठहरू १ मुझे सुख कहाँ मिलेगा ? मैं लक्ष्मी कहाँसे प्राप्त कर सकूँगा ? इसके लिए मुझे किस लक्ष्मीके लाल राजा-महाराजाकी सेवा करनी पड़ेगी ? स्वरूप सौभाग्यवाली स्त्री कैसी होती है और मेरा भोग्य क्या है ? भोग, विभूति मैं कैसे भोग सकूँगा १ रसना इन्द्रियका विषय रस क्या ही अच्छी चीज्रहैं । और और इन्द्रियोंके विषय भी मनोहर है । मेरे मनोरथको कौन सी वस्तु सिद्ध करेगी, मैं शत्रुको कव मारूँगा । पांडु सोचता है विचारी मृगीके प्राण-प्यारे हरिणको एक क्षणमें ही बहुत ही बुरा काम किया। अब मैं आगे कौनसा शुभ इस पापसे मेरा पिंड छूट सके । पांडु इस प्रकार विचार करता करता बेहोश हो गया; उसे अपनी कुछ भी सुधबुध न रही । कुछ काल बाद जब उसे कुछ चेत आया तव इधर उधर भ्रमिष्ट सा देखने लगा । इतने हीमें उसे एक योगीके पवित्र दर्शन हुए । उनका नाम था सुव्रत । वे व्रतोंसे युक्त थे; दीप्त अवधिज्ञानसे तमाम लोककी परिस्थितिको जानते थे स्थिर चित्त थे; गुप्ति-समितिको पालनेचाले आत्म-संयमी थे; छह कायके जीवोंके प्रतिपालक और परमोदयको प्राप्त थे; हमेशा ही आत्म-चिंतनमें लगे रहनेवाले और संसार - देह-भोगों से विरक्त थे; बारह भावनाओंमें लीन और शत्रु-रहित थे; प्रत्यक्ष बुद्धिशाली और अखंड लक्षणोंसे लक्षित थे । उनका शरीर उपवास आदि कायक्लेश से वे जितेन्द्रिय और क्षमाके भंडार थे । उनका पक्ष उत्तम था
1
क्षीण हो गया था । । वे अक्षय सुखके
JwV
1
कि मुझ हतात्माने इस धराशायी कर दिया, यह कार्य करूँ, जिसके द्वारा
"