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________________ १३४ पाण्डव-पुराण। www wmornwwwn दसवाँ अध्याय। उन अभिनन्दन प्रभुको मैं अपने मनोमन्दिरमें विराजमान करता हूँ जो आनंदके दाता और भयके घातक हैं । जिनका आत्मा निर्मल और कपायरहित हैं और जो उदार हैं-सवको एक दृष्टिसे देखते हैं। एक समय सफेद छत्रसे सुशोभित पांडुको क्रीड़ाके लिये वनमें जानेकी इच्छा हुई । तब उसने भेरी वजवाई । भेरीके शब्दको सुनकर चारों प्रकारकी सेना तय्यार हो गई । सूरजके घोड़ोंसे भी सुन्दर, चलते हुए चगर-किसवारवाले चंचल घोड़े सजाये गये । दाँतोंके प्रहारसे पर्वतोंको भी हिला देनेवाले तथा . उन्हींके वरावर ऊँचे बलवान हाथी तैयार किये गये । वे महायुद्धके जैसे देख पड़ते थे। सुन्दर पहियोंसे सजे हुए और लोगोंके पॉवोंको विफल कर देनेवाले रंथ इधरउधरसे तैयार हो-होकर आये । एवं मेघकी नॉई गर्जनेवाले और भयंकर दिखाववाले प्रचंड पयादे-गण धनुष ले-लेकर उपस्थित हुए । इत्यादि शोभासे युक्त पांडु वनको चला । उसकी आज्ञासे मद्री देवी भी उसके साथ साथ चली। वह अद्वितीय सुन्दरी थी। उसके नेत्र कमलसें खिले हुए थे। पूरे चाँदके जैसा मनको मोहनेवाला उसका मुंह था। उसकी मूर्ति देखने ही योग्य थी। उसके हाथकी उँगुलिमें एक सुन्दर अंगूठी थी। उसे वह हमेशा ही पहिने रहा करती थी। वह अपने कर्णफूलोंकी कान्तिसे सूरजकी और दाँतोंकी प्रभासे चाँदकी हँसी उड़ाती थी और कटाक्ष-बाणोंके पातसे मनुष्योंके मनको मोहती थी। कुचोंके भारसे उसकी अपूर्व ही शोभा थी। इसके थोड़ी देर बाद पांडु भाँति भॉषिके वृक्षोंसे सघन वनमें पहुंचा और वहाँ मद्रीके समागमसे उसका मन खूब प्रसन्न हुआ। वहाँ उसने देखा कि कहीं ऊँचे तालवृक्ष, कहीं सरल सरसके वृक्ष खड़े हुए हैं। कहीं सुन्दर मंजरियोंकी सुगन्धसे मनको मोहित करनेवाले आमके वृक्ष लह-कहा रहे हैं । कहीं अशोकक्ष कामनियोंके पाँवोंकी ताड़नाको पाकर हरे भरे हो रहे हैं । कहीं स्त्रियोंके कुल्लोंसे सींचे जाकर वकुलक्ष फल रहे हैं। कहीं नारियोंके संगमको पाकर कुरुवक जातिके वृक्ष विकशित हो रहे हैं। कहीं भौरियोंके साथ साथ भौरे कामदेवके यशको गा रहे हैं, जिसे कामने तीनलोकको जीत करके पाया है। कहीं कोयले मधुर मधुर शब्द कर रही हैं, जाना . जाता है कि वे गर्वको प्राप्त हुई कामनियोंके काम-तंत्रीके तारसे परिष्कृत किये
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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