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नौवाँ अध्याय ।
१२३ आगमनको सुना तब वह एकदम विचार-विमूढ हो गई और रोते हुए अपने वालकको छोड़ किसी दूसरेके वालकको गोदमें उठाकर बाहिर निकल पड़ी। कोई स्त्री दर्पणमें मुंह देख रही थी, वह दर्पण लिये ही घरके वाहिर आ गई। उसको दर्पण लिये हुए देखकर लोगोंको भ्रम होता था कि कहीं इसका हाथ ही तो ऐसा नहीं है। कोई स्त्री पतिको जीमता छोड़कर भागी, पर उसे कहीं राजा न देख पड़ा-मेघकी नश्वरताकी नॉई उसे राजाका भ्रमसा हो गया, तव वह राजाको देखनेकी इच्छासे इधर-उधर दौडती फिरने लगी। कोई स्त्री आभूपण पहिन रही थी। वह राजाको देखनेके लिये इतनी उत्सुक हो उठी कि उसे अपने गहने-गॉठेके सन्दूकको रखनेकी भी सुध न रही-वह उसे जहॉका तहॉ पड़ा छोड़कर वाहिर आ गई । एवं कोई स्त्री जल्दीमें गलेका हार कमरमें और कमरका सूत्र ( करधौनी) गलेमै पहिन कर वे-सुधसी हुई बाहिर आ खड़ी हुई। किसीने राजाके देखनेकी लालसासे चित्तभंग होकर भाल पर काजलका तिलक
और ऑखोंमें कुंकुमका कज्जल ऑज लिया। ठीक है कि कामी मनुष्यों को कुछ भी विवेक नहीं रहता । कोई भामिनी जो कपड़ा पहिन रही थी, उल्टी कंचुकी - पहिन कर कुच निकाले हुए ही पांडुको देखनेके लिये वाहिर आ गई । उसे देख लोगोंने उसकी खूब ही इसी उड़ाई। ठीक ही है कि कामी जनोंकी लाज फॅच कर जाती है । कोई स्थूलकाय स्त्री गाड़ीमें बैठी हुई किसी दूसरी स्त्रीको कहती है कि सखी, तुम जानेको बहुत ही उत्सुक देख पड़ती हो, जरा ठहरो और मुझे भी देखनेको साथ ले चलो । गर्म-भारसे थकी हुई कोई स्त्री भ्रम हो जानेसे चक्कर खाने लगी और वेहोशसी हुई इधर-उधर घूमती, गिरती, पड़ती फिरने लगी। सच है कि स्त्रियोंकी ऐसी ही गति होती है । वे किसी भी वात पर विचार नहीं करती । कोई स्त्री मार्ग न मिलने पर मार्ग रोकनेवाली स्त्रियोंको मीठे मीठे शब्दोंमें कहती है कि सखी, रास्ता छोड़ दो, मुझे तो महाराज दीखते ही नहीं । एवं कोई तरुणी मार्ग देनेके लिए आगेवाली तरुणी त्रियोंसे कहनी है, पर वे हटती नहीं, तब वह उन्हें गिरा कर चंचल-चित्त होती हुई, जलकी तरंगोंकी नॉई शरीरको भी चंचल बनाकर, फुर्तीसे उनके आगे निकल जाती है । एवं कुन्ती और मद्रीसे युक्त और लक्ष्मीसे परिणीत पांडुको देखकर हर्षिन हुई कोई स्त्री कहती है कि सखी, अगणित लक्षणोंवाले और सफेद छन द्वारा पहिचाने जानेवाले पांडुने इन दोनों सुन्दरियाँको किस पुण्यके उदयसे पाया है । लक्ष्मी और कान्तिके समूह-रूप इन