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________________ .ran or anemamimar narmvermomer, mar... - ... .. . १२२ पाण्डव-पुराण । देखकर विचारे मृगोंके बच्चे तृण चरनेके विचारसे आते तो दौड़कर थे, पर जाते थे हताश होकर । यहाँके धीर पुरुष अपने धनसे कुवेरको भी तिरस्कृत करते थे; अन्यथा जिनेन्द्रदेवके जन्मोत्सबके समय कुवेर वहाँ रत्नोंकी वरसा ही काहेको करता। ऐसी सुन्दर पुरीमें उन दोनोंने प्रवेश किया । वहाँ लेजा कर अंधकदृष्टिने खूब सजे हुए एक मनोहर मंडपमें पांडुकुमारको ठहराया और उसकी खूब पाहुनगत की । इसके बाद शुभ मुहूते और शुभ लग्नमें राजोंकी विवाहविधिक जानकार पुरुहितके द्वारा बड़े ठाट-बाटके साथ पांडकुमार फूल-मालोंसे सजी हुई वेदीके पास लाये गये । वहाँ उदारचित्त, मिष्टभापी, गुणाकर तथा कान्तिशाली पांडुकुमारको कुन्ती देवीने अपना वर पसंद किया; जैसे भारती (वाणी ) काव्यको पसंद करती है । इसके सिवा माता-पिता आदि द्वारा सत्कृत मद्रीने भी बड़े स्नेहसे कुन्तीके साथ-ही-साथ कुमारको अपना पति बनाया; जिस तरह सव गुण-सम्पन्न सीता सतीने रामको अपना पति बनाया था । इस समय पांडुकुमारकी सबने पूजा की । किसीने अखंड वस्त्र और कीमती गहने पहिनाये, किसीने हाथी, किसीने रथ, किसीने घोड़ा और किसीने सोना-चॉदी एवं भाँतिके भॉतिके हथियार दिये। कहनेका तात्पर्य यह है कि पांडका लोगोंने सव तरहसे बड़ा आदर-सत्कार किया; किसीने किसी भी वातको उठा न रक्खा । इसके बाद मद्री और कुन्ती दोनों कन्याओंको लिवाकर कौरवोंका अगुआ और भोगी पांडकुमार इन्द्रकी नॉई सब तरहसे सुशोभित हस्तिनापुरको चला आया। वहाँ जब उसने नगरमें प्रवेश किया तब वहॉके. सब कार्यकुशल नरनारीगण अपने अपने काम-काज छोड़कर पांडकुमारको देखनेके लिये आये । इस समय पांडुकी अपार विभूतिको देखकर एक स्त्री दूसरी स्त्रीको पूछती है कि भद्रे, पांडु कहाँ है और कहा जाता है ? देखो तो सही, उसने कैसी विभूतिके साथ नगरमें भवेश किया है । यह सुन कोई और ही स्त्री वोल उठी कि शुभगे और मंगल-मूर्ति देवी, तुम इधर जल्दी आओ, मैं तुम्हें पांडका दर्शन कराये देती हूँ और तुम्हें जो पांडके देखनेका कौतुक हो रहा है उसे अभी मिटाये देती हूँ। कोई स्त्री स्नान कर रही थी, इतनेमें ही उसने पाडु महीपतिके शुभागमनको सुना और वह स्नान करना छोड़ आधा ही कपडा पहिने वाहिर चली आई-~-उसे कुछ भी सुध-बुध न रही। एवं कोई भोजनकी थाली पर जीमनेको बैठी ही थी कि उसने राजाके आनेका समाचार सुना और वह भोजनको छोड़कर एकदम बाहिर निकल आई। किसी स्त्रीने जन पांडुके
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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