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________________ नौवॉ अध्याय । करके अपना भार हलका करना चाहते हैं; जान पड़ता है ये इसीलिए आपको फल और छाया वगैरह दे रहे हैं। सो ठीक ही है कि अपनी वराबरीवालेकी सभी पाहुनगत करते हैं । ये जव आप जैसे ही उन्नत और फल-फूलोंवाले हैं फिर आपका स्वागत क्यों न करें । ये सूअर देखो, कीचड़में कैसे लोट रहे हैं, मिट्टीसे विल्कुल ही लथ-पथ हो रहे है और वनमें रहनेवाली अंधेरैकी खासी मूर्तिसी देख पड़ते है। राजन्! ये आपके शत्रु ही आपके प्रतापसे यहॉ आ छिपे हैं। इस तरह देवतों, विमानों और तिलोत्तमासे भरे पूरे स्वर्गकी भाँति विद्वानों, विमानों और नरनारियोंसे भरपूर मार्गको देखता-भालता, दिल बहलाता पांडुकुमार थोडे ही समयमें सारे रास्तेको तय कर सूरीपुर जा पहुँचा । कौरववंशी पाडको आया सुनकर यादवेश्वर राजा अंधकदृष्टि उसकी अगवानीके लिये शहरसे बाहिर आया और सामने आकर उससे मिला । वहाँ उन दोनोंने एक दूसरेका सत्कार किया और परस्परमें भेंट की एवं आपसमें कुशल-समाचार प्रछा । इसके बाद वे दोनों पुरीके भीतर आये । पुरीमें जो तोरण बंधे हुए थे वे उसके पॉव थे और मनोहर धुजाएँ उसके हाथ थे। पुरीके ये हाथ-पॉव हवासे खूब हिल रहे थे, जिससे ऐसा भान होता था कि यह पूरी नहीं है, किन्तु नटी है और वह हवारूप नटके द्वारा आदर की गई नाच ही करती है । इस पुरीके सब मन्दिरों पर सोनेके सुन्दर कलश चढ़े हुए थे, जिससे ऐसा जान पड़ता था कि मानों वे पुरीरूपी नटीके उन्नत कुच ही हैं। उसमें कहीं कहीं भॉति भॉतिके रंगके साथिया पुरे हुए थे और स्वस्तिकल्याण-से परिपूर्ण राजागण निवास करते थे । यहाँके महलों पर बैठी हुई नारियॉ मंगल-गीत गाती थीं, जिनसे ऐसा भान होता था मानों वह नारियों के शब्दों द्वारा और और राजोंको ही बुला रही है। इसके दरवाजों पर बंधी हुई मालाओंसे ऐसा जान पड़ता था मानों वह स्वर्गलोकको ही हँसती है । यहॉपर दीवालोंमें चंद्रकान्त मणियाँ जड़ी हुई थी और उन पर आकर चॉदकी चाँदनी पड़ती थी, जिससे वे असमयमें जल वरसाती थीं और मरोंको नाचनेके लिये उत्साहित करती थीं; एवं प्रजागणको भी आनंद देती थीं। इस समय' लोगोंको ऐसा ख्याल होता था कि ये चंद्रकान्त नहीं है। किन्तु घरेलू मेघ ही हैं। यहॉकी भीतें स्फटिककी बनी हुई थीं, अतः उनमें अपने प्रतिविम्बको देखकर स्त्रियोंको ऐसा भ्रम हो जाता था कि क्या यह हमारी सौत तो नहीं आ गई है। वे यह सोच पतिके पाससे हट जाती थीं और पति-गण इसी परसे उनकी खूब हँसी उड़ाते थे । यहॉकी भूमिमें सब जगह हरिनमणियाँ खची हुई थीं, जिनको पानव-पुराण १६
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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