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________________ पाण्डव-पुराण,। apanMARAMANANAMMonkranArwaWARI AAAAAAAI के आनंदको प्रगट कर रही है । इस समय वह इन्द्रके जैसा गोमता था; इन्द्रसे किसी भी वातमें कय न था । इस समय पांडुके साथ जो सजे हुए. और सारथियों सहित रथ-समूह जा रहे थे वे ऐसे जान पड़ते थे मानों जंगम मन्दिर ही है और वे चलने योग्य हो गये है । दाँतोंके प्रहारसे पहाड़ोंको भी गिरा देनेवाले और अपनी ध्वनिसे दिशाओंको प्रतिध्वनित करनेवाले हाथी चिंघाड़ रहे थे । छत्ता लगाये हुए मित्र मंडल-जो मित्र ( सूरज ) मंडलकी नॉई सुशोभित था-साथ जानेकी खुशीसे हर्पित हो रहा था । नगाड़े-रूप कामी पुरुष यद्यपि वस्त्र वगैरहसे प्रच्छन्न थे; उनके सव ओर कपड़ेकी झालर लगी थी पर तो भी वे उँगुली-रूपी पियाके गाढ़ आलिंगनसे शब्द कर रहे थे। तात्पर्य यह कि मियाके आलिंगनकी खुशीमें उनसे चुप न रहा गया और इसी लिये वे शब्द कर रहे थे। एवं चतुर नट-गण अपनी नटियों के साथ साथ उनके आगे आगे नृत्य कर रहे थे। जान पड़ता था कि मानों वे उत्साहमें आ कोपसे देवांगनाओंके नाचको ही नीचा दिखा रहे हैं। इसी समय हा हा, तुम्बर न नारदोंको जीतनेके लिये अभिमानसे भरे हुए गंधर्व-गण विवाहके समय गानेको उत्तम उत्तम गीत गूंथ रहे थे । पांडुको जाते समय सौभाग्यवती स्त्रियाँ मनोहर स्वरोंमें मंगल पाठ पढ़ रही थीं, मानों वे देवांगनाओंको जीतनेकी ही कोशिश करती थीं। इसके बाद पांडुकी माता सुभद्राने पांडुकी मंगल आरती उतारी और उसे सिद्ध भगवानकी आसिका दी। इस प्रकारके उत्सव-पूर्वक पांडु विवाहके लिए हस्तिनापुरसे सूरीपुरको चला। रास्तेमें पांडुको उसके सेवकजन प्रकृतिकी शोभा दिखाते जाते थे कि कुमार देखिए, यह कमलोंसे पूर्ण और शब्द करती हुई नदी सुन्दर प्रियाकी नाई कैसी मनोहर देख पड़ती है। क्योंकि प्रिया भी कमलोंके भूषण पहिनती है और मीठी वात करती है। इधर देखिए, यह अचल धराधीश ( पहाड़) आपके समान ही उन्नत वंश (वॉस और दूसरे पक्षमें वंश) वाला है, राजोंसे युक्त है; क्योंकि शत्रुओंके भयके मारे राजा-गण यहीं आश्रय पाते है। इसके उत्तम पाद ( नीचा भाग और चरण ) है और इसमें उत्तम उत्तम गुण हैं । तात्पर्य यह कि यह आपसे किसी भी बातमें कम नहीं है। नाथ, और भी देखिए कि मार्ग, विवाहका उत्सव मनानेके लिए हर्षित मयूरगण अपनी अपनी मयूरीके साथ कैसा सुन्दर नृत्य कर रहे हैं ! जान पड़ता है कि नटियों के साथ साथ उत्तम नर-गण ही नाच रहे हैं। और सघन छायावाले • ये वृक्ष फल और पत्तोंके भारसे पीड़ित हो रहे हैं, अतएव आपकी पाहुनगत
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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