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________________ GAAAAAAAAAAA नौवॉ अध्याय । ११९ तीखी तलवार थी, जिसे देखकर लोभी पुरुष भयभीत होते थे। वे हर्षके साथ दान देते थे, लोगोंको अपनी नम्रता दिखाते थे । वे महान् उद्योगी थे और हर एक वात पर युक्ति द्वारा विचार करते थे । उनका हृदय वड़ा गंभीर था । वे जब तक किसी कामको कर न गुजरते थे तव तक कोई भी उनकी बातको जान न पाता था कि इस समय महाराज क्या करना चाहते हैं । उनके कार्यों को देख कर सव अचम्भा करके रह जाते थे। दूतने आगे बढ़कर, द्वारपाल द्वारा दिखाये हुए पृथ्वीपतियोंके पति व्यास महाराजके आगे भेंट रखी और उन्हें नमस्कार किया। इसके बाद वह बोला कि राजन, सूरीपुरके राजा अंधकष्टिको सब कोई जानता है । वे देवतों पर इन्द्रकी नाँई सुख-पूर्वक अपनी प्रजा पर शासन करते हैं । मभो ! उन्होंने मुझे आपके पास भेजा है। वे चाहते हैं कि आपके राजकुमार पांडुके साथ मेरी पुत्री कुन्तीका ब्याह हो । दूतके इन वचनोंको सुनकर राजाने कहा कि जो वात युक्त है उसे कौन नहीं चाहेगा। भला, अंगूठी और मणिका संयोग किस बुद्धिवानको पसंद नहीं पड़ेगा। व्यासजीको तो पहलेहीसे मालूम था कि कुन्तीको पांडु चाहता है । उन्होंने दूतसे कहा कि जैसी सूरीपुरके ईश अंधकरष्टिकी मनसा है वैसी ही हमारी भी है। उनकी इच्छाके अनुसार हम तैयार हैं। व्यासने इसी समय पांडु और कुन्तीके ब्याहकी सिद्धिके लिये बड़ा भारी महोत्सव किया और सव सभासदोंके आगे प्रतिज्ञा की कि पांडके लिए मुझे कुन्ती . लेना स्वीकार है। ___इसके बाद नाना प्रकारके वस्त्र और आभूपोंके द्वारा उन्होंने दूतका खूब आदर किया और लग्न-दिनका निर्णय करके भेंट सहित उसे सूरीपुरको रवाना कर दिया। - इसके बाद पांडकुमार विवाहके लिए सूरीपुर जानेको हस्तिनापुरसे निकला । वह नाना प्रकारके बहुमूल्य गहने पहिने था और उसके साथ कितने ही राजागण थे । उसके सिर पर सफेद छत्र लगा हुआ था, जिससे कि वह इन्द्रके जैसा शोभता था । उसके आगे आगे नाना प्रकारके वाजे बजते जाते थे, जिनसे सभी दिशाऍ शब्दमय हो रही थीं। प्रकीर्णक-जन उसके ऊपर चमर ढोरते थे, जिससे वह ऐसा जान पड़ता था मानों सारी पृथ्वी पर एक वही श्रेष्ठ पुरुष है। चमर उसकी इस उत्तमताको ही जता रहे हैं। पांडके घोड़ोंकी टापोंसे जो धूल उड़कर लोगोंको धूसरित कर रही थी उससे जान पड़ता था कि वह लोगोंको जान-बूझ कर धूलसे रंजित कर विवाह
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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