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नौवाँ अध्याय ।
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नौवाँ अध्याय ।
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'शंभवनाथ मञ्जुको नमस्कार हैं, जो सुखके दाता और पापके विध्वंसक हैं, जो संसारसे पार उतारनेवाले हैं, सुखके सागर हैं ।
यहाँ गणधर प्रभु कहते हैं कि हे श्रेणिक, लोग बड़े मूर्ख हैं, जो इस तरहसे पैदा हुए कर्णकी कानसे उत्पत्ति बताते है । उसके जन्मकी बात लोगों में कानोंकान चली थी, इसलिये तो माताके कुलमें उस सुन्दराकृतिका कर्ण नाम पड़ा और चंपानगरी में राजा भानुने जिस समय अपनी रानीको इसे सौंपा उस समय वह कान खुजाती थी, अतएव वहाँ भी कान खुजानेके निमित्तसे भानु नरेशने उसका कर्ण नाम रख दिया ।
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दूसरी बात यह है कि जो लोग जवरदस्ती कर्णकी कानसे ही उत्पत्ति बताते हैं उन्हें इस बात पर भी तो विचार करना चाहिये कि यदि कानसे ही कर्णकी उत्पत्ति हुई हो तो अब भी पृथ्वी पर कान, आँख, नाक वगैरह से मनुष्योंकी उत्पत्ति क्यों नहीं होती । दूसरी बात यह है कि जब आज तक कान वगैरह से कभी मनुष्य की उत्पत्ति न तो सुनी गई और न देखी ही गई तव फिर कानसे कर्णकी उत्पत्ति कैसे हो गई ? यह बात उचित नहीं जान पड़ती । देखो, जिस तरह गायके सींग से कभी भी दूध नहीं निकल सकता उसी तरहसे तीन काल में भी कानसे कभी मनुष्य पैदा नहीं हो सकता । और भी सुनिए । जिस प्रकार वाँझ स्त्री से पुत्र, पत्थर पर अन्न, आकाशमें फूल और गधेके मस्तक में सींग, सॉपके मुँह से अमृतकी उत्पत्ति होना असम्भव है उसी प्रकार कानसे कर्णकी उत्पत्ति होना और कहना भी असम्भव है । यदि ऐसा सम्भव होता तो दुनिया विवाह वगैरह की झंझटोंमें कभी न फॅसती; किन्तु कानसे कर्ण जैसे पुत्रोंकी उत्पत्ति करके ही पुत्रवाली बन जाती । राजन्, कानसे कर्णकी उत्पत्ति बताना, यह सब आकाशके फूलकी सुन्दरताका ही वर्णन है । इसमें कुछ भी सार और सत्य अंश नहीं है | अतः हमने जैसी कर्णकी उत्पत्ति पहले बताई है वही सत्य है और सार है । तुम वैसा ही विश्वास करो | सूरजके समागमसे कुन्तीके कान द्वारा कर्णकी उत्पत्ति होना निरी झूठी बात है | भला मनुष्यनीके साथ सूरजका समागम ही कैसे हो सकता है । यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि फिर कर्णको सूर्यसुत क्यों कहते है । इसका उत्तर यह है कि चंपानगरी के राजा भानुने इसका पालन-पोषण किया