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पाडण्व-पुराण |
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यमुनानदीके बिल्कुल किनारे चम्पापुरी नामकी एक नगरी है । उसके महलोंके ऊपरी भागमें सोनेके सुन्दर कलश लगे हुए हैं, जिनसे वह बहुत सुशोभित है | वहाँके मन्दिरों पर धुजायें फहराती हैं, जिनसे ऐसा भान होता है कि मानों धुजा-रूप हार्थोके इशारेसे नगरी उत्तम नर-जन्मको चाहने वाले और शुद्धमना सुर-असुरोंको बुलाती ही है । चम्पानगरीके चारों ओर जो खाई है, वह ऐसी जान पड़ती है कि मानों यह पाताल लोक में वहनेवाली यमुनानदी ही है और पाताल-वासियों पर रुष्ट होकर वह यहाँ आ गई है । यद्यपि चाँद रस्मियोंके समुदायसे भरपूर हैं, भासुर और छिद्र-रहित है; परन्तु तो भी वहाँके ऊँचे शिखरों वाले मन्दिरोंसे विसजाने के कारण वह छिद्रवालासा देख पड़ता है | वहाँके मन्दिरोंके शिखर बड़े ऊँचे हैं, इस लिये उनके साथ चन्द्रमाकी मित्रता हो गई, और इसी कारण वह अब विश्राम के लिये वहाँ आकर ठहरता है । ठीक ही है कि वड़ों के साथ ही बड़ोंकी मित्रता हो पाती है । इसका तात्पर्य यह है कि वहाँके मंदिर महल बड़े बड़े ऊँचे हैं । वहाँ वासुपूज्य प्रभुके गर्भ और जन्म ये दो कल्याणक हुए है; अतः वह पुरी पवित्र है । इसके सिवा उसके पासके वनवें दीक्षा ले केवलज्ञान लाभकर कई भव्यजीव मोक्ष-महलमें जा विराजे है । वह नगरी अंगदेशमें है और उसमें भाँति भॉतिके पुरुषोंका निवास है । वह अगणित गुणोंवाली और केलके थंभ के समान सुन्दर जॉघोंवाली स्त्रियोंसे भासुर है; एवं स्त्रियोंके भासुर मुख चंद्रके द्वारा अँधेरेको दूर कर हमेशा ही उद्योत - रूप ग्हा करती है । वहाँके दानी पुरुष हमेशा ही पात्रोंको दान देते हैं और लाभके निमित्तसे प्रकाशरूप होकर रत्न और हर्षको पाते हैं । ऐसी अपूर्व नगरीका पालक राजा था भानु । वह हमेशा विवेकी और शिष्टजनोंकी रक्षा करता था और दुष्टोका निग्रह करता था । उसके प्रतापसे डर कर जो लोग उदासीन हो जाते थे उन त्रिरक्त पुरुषोंका वह आश्रय था । उसमें बहुत गुण थे, अतः वह उनसे भानुके जैसा सुशोभित था । सूरजकी किरणों जैसी उसके शरीर की कान्ति थी । वह शत्रु-रूप ईंधनको जला डालनेको अग्नि था और प्रतापमें सूरजके जैसा था । उसमें सुरजसे भी यह विशेषता थी कि सुरजका तो रातमें अस्तित्व नहीं रहता; और यह कभी प्रताप और दीप्ति से हीन नहीं होता था; हमेशा ही उदित रहता था- दशों दिशाओंको तेजोमय बनाये रखता था । वह इतना बड़ा दानी था कि उसके दिये '
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