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पाण्डव-पुराण | विद्वानोंने कहा है कि स्त्री नदीके तुल्य होती है। कारण कि रस-संस्कार (जलप्रवाह ) के द्वारा जिस तरह नदी अपने किनारोंको गिरा देती है उसी तरह, शृंगारादि रस और संस्कारोंके द्वारा स्त्री भी अपने कुलको दाग लगा देनी है। इस लिए चाहे वे बड़े बड़े पुरुषों के द्वारा ही रक्षित क्यों न हों, पर तो भी नागिन, नखवाले पशुपक्षी, नारी और दुष्ट पुरुप इनका भूलकर भी भरोसा नहीं करना चाहिए । और इसी लिए कहा जाता है कि पुरुपोंको स्त्रीका कभी भरोसा नहीं करना चाहिए । और जब वह कामासक्त हो तब तो उसकी छोह भी अपने ऊपर नहीं पड़ने देना चाहिए । जरा सोच कर तो देख कि स्वभावसे ही लोगोंको सतानेवाली नागिन काट दिये जाने पर कभी विश्वास करने योग्य हो सकती है ! अरी दुष्टा, अब तू ही विचार कि हमने तो. पुत्रीको रक्षाक लिए तेरे सुपुर्द किया था और तूने विना विचारे ही बिल्लीवाली कहावत कर दिखाई । वह यह कि यदि विल्लीको रक्षाके लिए दूध सौंप दिया जाय तो वह रक्षाकी जगह स्वयं ही उसे भक्षण कर जायगी । सो ही तूने किया । यह तेरा कृत्य सर्वथा अक्षम्य है । कुन्तीके माता-पिताके ऐसे डाट-डपट भरे शब्दोंको सुनकर धाय बड़ी भयभीत हुई । उसे कुछ भी उपाय न मुझ पड़ा। उसका सारा शरीर थर थर काँपने लगा और पसीनेसे बिल्कुल ही तर हो गया ।' उसके मुंहकी सारी चमक-दमक नष्ट हो गई । वह जैसे तैसे बोली कि राजन्, आप अशरणोंके लिये शरण है, यादव कुलके पालक हैं, दयाल और धर्मात्मा हैं । कृपाकर सावधान चित्त हो मेरी एक प्रार्थना सुन लीजिये । राजेन्द्र, इसमें न तो कुन्तीका अपराध है और न मेरा ही। किन्तु अपराध है पूर्वभवमें किये हुए कर्मका । पूर्वकृत कर्म जीवोको नटकी नॉई जैसा चाहते नचाते हैं । महाराज सुनिए । कुरुजांगल देश पांडु नाम एक राना है। वह कौरव-वंशी और इन्द्रके जैसी विभूतिका धारक है और अखंड रीतिसे अपने कुलकी रक्षा करता है। एक बार वह कुन्तीके रूप पर आसक्त हो गया और उसके बिना बड़ा क्षोभको प्राप्त हुआ। उसके पिताने कुन्तीके लिये आपसे बहुत बार प्रार्थना की, पर आपने उस पर जब कुछ भी ध्यान नहीं दिया तब वह स्वयं ही कुन्तीसे प्रार्थना करने और उसके साथ रमनेका उपाय सोचने लगा। कारण, उसके हृदयमें कुन्तीके निमित्त से हमेशा ही कामअग्नि बँधका करती थी। दैवयोगसे इसी वीचमें एक दिन वनमें उसकी वज़माली विद्याघरसे भेंट हो गई और उसके द्वारा भॉति भॉतिके रूपोंको देनेवाली