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वह धाय बोली कि मनमोहनी प्यारी पुत्री, तुम कुछ भी भय और चिन्ता मत करो, दिली मैलको धो डालो तथा भरोसा कर लो कि जिस उपाय से तुम्हारी भलाई होगी मैं वही उपाय सोच निकालूँगी । तुम्हें इस सम्बन्धमें तनिक भी चिन्ता नहीं करना चाहिए | तुम तो सुखके साथ अपना समय बिताओ । धाय धैर्य देने में बहुत ही दक्ष थी । उसने उक्त प्रकार कुंतीको खूब ढाढ़स दिया और आप स्वयं राज-महलमें रहकर अपना समय विताने लगी ।
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आठवाँ अध्याय ।
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इसके बाद नय नीतिको जाननेवाली उस धायने कुंतीके दोषोंको जहाँ तक बन सका बहुत दिनों तक छिनाया । धीरे धीरे कुछ ही दिनों में पांडुके सम्बन्ध से कुन्ती गर्भवती हो गई, और धीरे धीरे उसका गर्भ वृद्धिंगत होने लगा | इस समय गर्भको देखकर लोगोंको भाँति भौतिकी भ्रांति होती थी और वह गर्भ भी अपूर्व शोभा पाता था । गर्भ के प्रभावसे कुछ ही कालमें कुन्तीका उदर कड़ा पड़ गया और त्रिवली मिट गई । इस तरह उसके गर्भका पहला चिन्ह प्रगट दीख पड़ने लगा । उसका मुॅह पीला पड़ गया । धूक अधिक आने लगा । बोल-चाल कम हो गया । एवं उसके नेत्र सुन्दर - सुहावने देख पड़ने लगे । साड़ी के ऑचलसे प्रच्छन्न ( ढके हुए) कुच - कुंभ उन्नत और सोनेकी आभा जैसे पीले हो गये । एवं जिस तरह जलसे सींची गई बेल, फूल और पत्तों द्वारा शोभा पाने लगती है उसी तरह गर्भ-भारसे कुचोंके भारको वहन करनेवाली कुन्ती भी शोभा पाती थी ।
एक दिन दैवयोग से गर्भ-भारके श्रमसे थकी हुई कुन्तीको उसके मातापिताने देख लिया | देखकर वे बड़े चिन्तित हुए | घायसे वे वोले कि क्योंरी तू बड़ी दुष्टा है, तुझे नाम मात्र दया नहीं । हे नीच और अनिष्टों को पैदा करनेवाली, तूने कुन्तीसे यह अनिष्ट किस पुरुषके समागमसे करवाया । क्या तू नहीं जानती कि पुत्री और पुत्र वधू ये दोनों चाहे कितने ही ऊँचे कुलकी क्यों न हों यदि स्वतंत्र रहेंगी तो जार संसर्ग द्वारा पवित्र से भी पवित्र कुलमें कलंक लगा देंगी । और इसी विचारसे ही हमने रक्षा के लिए इसे तेरे सुपुर्द किया था । पर तूने ऐसी रक्षा की, जो मगढ ही दीख पड़ती है । यह इतनी बड़ी गलती हुई है कि इसके सम्बन्धसे राजों महाराजोंकी सभा में हमें नीचा मुँह करना पड़ेगा और लाजके मारे हमारे शरीर पर स्याही फिर जायगी । एवं इससे हमें बहुत दुःख उठाना पड़ेगा | नीतिके