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पाण्डव-पुराण। उसे अपनी ओर न झुका सकी । यह कुरुदेशके राजा व्यासका पुत्र है। इसे पांडु पण्डित कहते है । इसकी आकृति-धुति-विल्कुल पॉडु ( सफेद) है, जान पड़ता है कि इसी लिए इसका नाम पांडु पड़ा है । यह मेरे रूपको सुनकर मुझ पर बड़ा आसक्त चित्त था। इतनेमें उद्यान-मन्दिरमें इसे वज्रमाली विद्याधर द्वारा एक इच्छित रूप देनेवाली अंगूठी मिल गई। उस अंगूठीके प्रभावसे अदृश्य रूप बनाकर, मेरे साथ रमनेकी इच्छासे, यह मेरे पास आया था। __कुन्तीके ऐसे वचनोंको सुनते ही धायका सारा शरीर काँप उठा; और शरीर-कम्पके सम्बन्धसे पृथ्वी भी हिल गई । वह बोली कि प्यारी पुत्री, दुष्ट कामके वश हो तुमने यह क्या विरूप कर डाला है । देखो, नीतिके विद्वानोने कैसी अच्छी शिक्षा दी है कि स्त्री चाहे वाला हो चाहे वृद्धा, लिखी पढ़ी हो चाहे निरी अपढ़, अंग-हीन हो चाहे युवती और कैसी ही सुन्दरी क्यों न हो उसे पुरुषसे हमेशा दूर ही रहना चाहिए। नहीं तो कभी न कभी अवश्य ही अनिष्ट होगा। वाले, भला इस बातको लोग क्या जानेंगे कि इस पुरुपने ही कन्याके साथ जबरदस्ती की है और कन्या सर्वथा निर्दोष है । वे तो यही कहेंगे कि कन्याने यह बहुत बुरा काम किया है । इसके सिवा इस दुष्कर्मसे कमलकी नॉई स्वच्छ और कलंक-रहित तुम्हारे कुलमें भी तो कलंक लग जायगा। और यह तो बताओ कि जब इस दुष्कृत्यको पिता वगैरह विचारशील पुरुष सुन पाँवेगे तब तुम्हारी और मेरी दोनोंकी ही क्या दशा होगी ?
यह सुनते ही कुन्तीका शरीर काँपने लगा और देखते ही देखते सिकुड़ गया; एवं उसकी कान्ति वगैरह सव हो विदा हो गई । वह बड़ी डरी और निसासें छोड़ने लगी तथा गद्गद हो दीन स्वरमें करने लगी कि माता, तुमने मुझे पाला
और पोषा है, अत: तुम मातासे भी बढ़ कर मेरी महा माता हो और सभी योग्य-अयोग्य बातोंको जानती-समझती हो । इस लिए मेरे ऊपर कृपा कर तुम इस वक्त मुझे मेरा कर्तव्य बताओ । इसीमें मेरी भलाई है । तुम सभी तरह मेरे मनोरथोंको पूरा करने के लिए समर्थ हो, अतः इस समय अब तुम मेरे छल-अपंचको मत देखो; किन्तु मेरे दुःशीलको पवित्र करो-सुधारो और दयाका परिचय दो । माता, मरनेके सिवा अब और तरह मेरी पीड़ा नहीं जा सकती; इस लिए
अब मैं शीघ्र ही अपने प्राण पखेरुओंको उड़ा देनेकी कोशिश करूँगी । कुंतीके ' . ऐसे भारी दुःखभरे शब्दोंको सुनकर धीरा और सभीको आनंद देनेवाली ।