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दो । यहाँ ग्रन्थकार कहते हैं कि देखो, कामी पुरुषोंकी ऐसी गति होती है । वे योग्य-अयोग्यका कुछ भी विचार नहीं करते -- उनके हृदयसे विवेक कूच कर जाता है । पांडु कहता है कि दयाधर्मको पालनेवाली देवी, अब देर मत करो; किन्तु जल्दी से मन दो, वचन दो, और काम भी दे डालो, क्योंकि तुम्हारे दिये हुए दानके बिना अब मुझे कल नहीं पड़ती; सन्तोष नहीं होता। क्या तुम्हें ज्ञात नहीं कि अर्थी पुरुष दानसे ही सुखी होते हैं । कामसे रुचि रखनेवाली और उत्तम बुद्धिवाली देवी, यदि तुम्हें मेरा यह कहना रुचता हो तो तुम जल्दी से कामके मदको दूर करनेवाली क्रीड़ा करो। देखो, इच्छावाला पुरुष दाताके पास जाता है और दाता उसकी इच्छा को पूरी करता है। इसमें यही एक कारण है कि याचना भंग करना संसार में शोभा नहीं पाता — इसे लोग अच्छा नहीं कहते । हे घूर्णिते ! अब तो तुम आलसको छोड़ दो और मेरी मा घूर्ण विधि - पाहुन गत करो; क्योंकि मैं तुम्हारा प्राघूर्णक— पाहुना हूँ | देखो, अब मेरी याचनाको भंग मत करो। कामदेव बहुत ही निष्ठुर है, वह हमेशा ही नर-नारियोंको दुःख देनेके लिये तैयार रहता है और अपने धनुषको कान तक खींच कर पॉच वाणों द्वारा उन्हें दुःख दिया करता है । और इसी लिये यह कहा जाता है कि तभी तक लाज और कुल रहता है, तभी तक भय और मर्यादा रहती है तथा तभी तक माता-पिता और परिवारकी आन रहती है जब तक कि कामदेव कोप नहीं करता । इतनी बात चीतके बाद उन दोनोंने मदातुर होकर लाज- रूपी परदेको छेद-भेद डाला और बहुत कालके वियोग के कारण उस समय सारी काम चेष्टायें कीं । पांडुने कुन्तीके गलेमें हाथ डाल दिया और — जिस तरह कमलको भौरा चूमता है उसी तरह — उसके मुँह पर अपना मुँह रखकर वह उसका चुम्बन लेने लगा । वह कमलकी गंधको सुँध लेने मात्र से उन्मत्त हुए भरेकी तरह उसके अपूर्व मुँent गंधको कर बड़ा सन्तुष्ट हुआ - उन्मत्त सा हो गया । वह उसके वनको कभी सिकोड़ देता और कभी फैला देता । इस तरह दोनों भुजाओंसे उसका बार बार आलिंगन कर वह उसके साथ भोग-क्रीड़ा करने लगा । हाथी के कुंभस्थलकी नाँई ऊँचे उसके दोनों कुच रूप कुंभों पर पांडुके दोनों हाथ ऐसे जान पड़ते थे मानों वे निधिके लोभी सुखी और आसक्त दो पुरुष ही इन कुंभों की सेवा करते हैं । वियोग-रूपी गरुड़से डरा हुआ और स्त्रीमें दत्तचित्त वह उसके कुच-रूप वनमें क्रीड़ा करने लगा, जैसे गरुड़से डरा हुआ सॉप चंदन-वनमें कीड़ा करता है । वह कभी उछलता, कंभी चुम्बन लेता, कभी हास - विलास और
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पाण्डव-पुराण |
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