________________
पाडण्व-पुराण । wwwwwwwmmmmmmmmwwwwinna mmmmonwrom था । राजोंके राजा भी उसकी सेवा करते थे । वह भविनारायण था । शठोंकी शठताका वह बहुत अच्छा इलाज करता था।
एक समय व्यासने कुन्तीके पिता अंधकदृष्टिसे पांडुके लिए सुकेशी कुन्तीकी याचना की । तव अंधकवृष्टिने इस पर अपने पुत्रोंके साथ एकान्तमें विचार किया और यह निश्चय किया कि पांडुको कुष्ट रोग है, इस लिए उसे कन्या देना योग्य नहीं । इसके बाद पहलेकी भाँति व्यासने कुन्तीके सम्बन्धमें अंधकदृष्टिसे वार वार प्रार्थना की; परन्तु उसे सफलता प्राप्त न हुई। तात्पर्य यह कि अंधकदृष्टिने पांडुके लिए कुन्तीका देना स्वीकार न किया। आखिर व्यास अपने चित्तमें धीरज घर कर चुप रह गया।
___ उधर इन्द्र जैसी विभूतिका धारक पांडु राजा कुन्तीके रूप पर निछावर हो चुका था। उसके बिना उसे एक मिनट भी चैन न थी; जैसे कि रतिके विना कामदेवको कल नहीं पड़ती । पांडुताका स्थान पांडु राजा कुन्तीका स्मरण करता करता ज्वरवाले पुरुषकी नॉई विह्वल और भूतग्रस्त पुरुषकी भॉति अस्थिर-चित्त हो गया था । कुन्तीके वियोगसे उसका शरीर झुलससा गया था, जैसे वज्रपातसे शालवृक्ष झुलस जाता है, परन्तु तो भी उसके भस्मकी भाँति पांडके शरीरकी अपूर्व ही शोभा थी।
एक दिन पांडु वनमें क्रीड़ाके लिए गया; और वहाँ वह फूलोंके उपहारकी शय्यावाले लतामंडपमें क्रीड़ा करने लगा । इतनेमें वहाँ पड़ी हुई उसे एक अंगूठी देख पड़ी । वह उसके पास गया और उसने उसे उठा लिया। इसी समय इधर उधर कुछ देखते फिरते हुए किसी विद्याधर पर पांडुकी दृष्टि जा पड़ी। उसे देखकर पांडुने पूछा कि भाई, तुम क्या खोजते फिरते हो? उत्तरमें विद्याधरने कहा कि मैं मेरी अंगूठी खोजता हूँ। यह सुन पांडने उसे अगूठी दिखाकर कहा कि महान पुरुषों द्वारा मान्य और विद्याधरोंके अधिपति! आप अंगूठी खोजनेका कष्ट काहेको उगते हैं। आपकी अंगूठी तो यह है । हे खगपति ! कहिए कि आपकी यह अंगूठी खोई कैसे गई थी? इस पर विचारशील विद्याधर बोला कि मै विजयाई पर्वतका निवासी वज्रमाली नाम विद्याघर हूँ। मैं अपनी प्राणप्यारीके साथ इस सघन वनमें सुख-क्रीड़ा करनेको आया था, और क्रीड़ा कर जब यहाँसे वापिस लौटा उस समय भूलसे विमानके किसी छिद्र द्वारा मेरी यह अँगूठी गिर गई। मुझे इसकी खबर न पड़ी।