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________________ आठव अध्याय | AMWWW A AAAAAAAAS दो पुत्रियाँ हुई । एक कुन्ती और दूसरी मद्री । कुन्ती नाना कलाओं में निपुण और कुचरूपी कुंभों के भारसे नम्र थी । पूरे चॉदके समान सुन्दर उसका मुख था और उन्नत नितम्व थे तथा कमर बिल्कुल पतली थी । वह अपने शरीर की कान्ति द्वारा हमेशा अंधेरेको दूर करती थी । अपनी कटाक्ष-रूप- सुधा-धारासे देवांगनाओं को भी जीतती थी । एवं मद्री भी मूर्त्तिमान् अनंग -- कामदेवकी समता करती थी । जान पड़ता था कि अनंगने यह शरीर ही धारण कर लिया है । वह अपने कटाक्षोंसे देवों और पंडितोंको भी जीतती थी । एवं देवतोंकी घरावरी करती थी । यहाँ गणधर प्रभु कहते हैं कि श्रेणिक ! अब हम क्रमसे समुद्रविजय आदि की परस्परमें प्रीति रखनेवाली मियाओंके नाम कहते हैं । सो तुम सुनो । An १०३ wwwww सुखकी खान शिवादेवी, गंभीर स्वरवाली धृतिधात्री, सुन्दर प्रभावाली स्वयंप्रभा नीति से चलनेवाली सुनीता, सीताके समान ही सुन्दराकृति सीता, मीठे वचन बोलनेवाली मिर्यवाक, मभारूप भूपणवाली प्रभावती, सोनेफी नाँई उज्ज्वल फैलिंगी, सुन्दर प्रभावाली सुभा ये क्रमसे नौकी स्त्रियोंके नाम हैं । समुद्रविजय आदिका सुवीर नाम एक भाई मथुरा में रहता था । उसकी प्रियाका नाम था पद्मावती । सुवीर और पद्मावती के भोजकदृष्टि नाम एक पुत्र था । उसकी प्रेयसीफा नाम सुमति था । वह सुन्दर मुखवाली और उत्तम ज्ञानवाली थी । उसका मन बहुत निर्मल था । भोजकदृष्टिके सुमति मियाके गर्भ से उग्रसेन, महासेन और देवसेन नाम तीन पुत्र उत्पन्न हुए । वे लोगोंको आनंद देनेवाले और अपनी वाहनको खुश करनेवाले थे । उनकी वहिनका नाम था गांधारी । वह बड़ी घीरवीर और गुणोंकी खान थी । पूरे चॉदके समान सुन्दर उसका मुख था | वह नम्र और चतुरा थी; गोल और कठोर कुचोंवाली थी । उग्रसेन आदिकी स्त्रियोंके क्रमसे पद्मावती, महासेना और देवसेना ये नाम थे । ये तीनों ही हँसमुखी थीं । - राजगृहका राजा वृहद्रथ था । वह इन्द्र जैसा सुशोभित था । उसकी सभायें बड़े बड़े राजा महाराजा उपस्थित रहते थे । वह राज सिंह था । उसकी भामिनीका नाम था श्रीमती । वह बहुत ही सुन्दरी थी । जान पड़ता था कि वह दूसरी लक्ष्मी ही है । दृहद्रथ और श्रीमतीके एक जरासंघ नाम पुत्र हुआ । वह भी बहुत प्रतापी और तेजस्वी था; तथा भरतक्षेत्रके तीन खंडोंका स्वामी
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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