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१०२ . पाण्डव-पुराण । वनमाला नाम वीरदत्तकी स्त्रीको हर लिया था । एक समय उसने मुनिको आहार दान दिया, जिसके प्रभावसे वह मर कर प्रभंजन राजाके यहाँ सिंहकेतु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ। वह अपने तेजसे सूरजको भी जीतता था।
उसी हरिवर्ष देशके शीलनगरमें वज्रघोष नाम एक राजा था । उसकी प्रियाका नाम था सुप्रभा । उसके गर्भसे वनमालाका जीव विद्युत्मभा नाम पुत्री उत्पन्न हुई। वह सुन्दर रूपवाली और मन तथा नेत्रोंको आनंद देनेवाली थी। कुछ काल बाद उसका विवाह सिंहकेतुके साथ हो गया। उधर वह वीरदत्त मरकर चित्रांगद नाम देव हुआ । एक दिन सिंहकेतु और विद्युत्लभा दोनों वनमें क्रीड़ा कर रहे थे । उन दम्पतीको उस चित्रांगद नाम देवने हर लिया। वह उन दोनोंको मारना ही चाहता था कि उसके मित्र सूर्यमभ देवने उसे मारनेसे रोक दिया और वह मान भी गया । तात्पर्य यह कि उसने उन्हें मारा नहीं, किन्तु चम्पानगरीके वनमें छोड़ दिया । फिर वे दोनों देव स्वर्गको चले गये। दैवयोगसे इसी समय चंपानगरीका चंद्रकीर्ति नाम राजा मर गया था । उसके कोई भी सन्तान न थी । अत: राजाके निश्चयके लिए हाथी छोड़ा गया । हाथी वनमें आया और उसने इन दम्पतीका अभिषेक किया। इन्हें वहॉका राज-पद मिल गया । उस समय सिंहकेतुने अपना सारा हाल वहाँके लोगोंसे कहा; जिसको सुनकर वे बहुत हर्षित हुए और उन्होंने सिंहकेतुकी खूव पूजा-स्तुति की। तथा मृकंडूका पुत्र होनेसे उन्होंने उसका मार्कण्डेय नाम प्रसिद्ध किया। इसके बाद हरिगिरि, हेमगिरि, वसुगिरि आदि राजोंकी वंशपरम्परा चली । उसके बाद सूर और वीर ये दो भाई भाई राजा हुए । सूरकी रानीका नाम सुरसुन्दरी था । वह अपनी सुन्दरतासे देवागनाओंकी समता करती थी। कुछ काल बाद सूर और सुरसुन्दरीके अन्धकदृष्टि नाम नीतिका ज्ञाता एक पुत्र पैदा हुआ। उसकी भार्याका नाम था भद्रा । वह बड़ी भद्र थी और कल्याणके मार्ग पर चलनेवाली थी। उसका मुख चाँदके जैसा था। कुच मनोहर थे । दृष्टि चंचल थी, जिसके लोगोंपर पड़ते ही उनका दिल चंचल हो उठता था । अन्धकदृष्टिके भद्राके गर्भसे दस पुत्र उत्पन्न हुए। वे सभी नीतिके ज्ञाता थे। प्रसिद्ध और उत्तम पुरुष थे । उनका मस्तक विशाल और सुन्दर था। वहुत क्या कहें वे दस धर्मसे देख पड़ते थे। उनके क्रमसे नाम थे-समुद्रविजय, स्तिमितसागर, हिमवत् , विजय, अटेल, धारण, पूरण, सुवीर, अभिनंदन और वसुँदेव । वसुदेव । वास्तवमें वसुदेव-धनदेव-ही था; महायलि और सुभट था । एवं अंधकष्टदिके