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आठवाँ अध्याय।
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एक दिन मैं विश्रामके अर्थ यमुना नदीके तट पर गया था । वहॉ मैंने अशोक वृक्षके नीचे सुन्दर रूपवाली तथा उसी समयकी पैदा हुई और किसी पापी द्वारा वहाँ छोड़ दी गई एक कन्याको देखा । मेरे कोई सन्तान न थी, इस लिए मैं हमेशा सन्तानकी स्पृहामें लगा रहता था । मैं उस सुरूपा कन्याको लेनेके लिये कुछ अचम्भेके साथ प्रत्त हुआ । तब आकाशवाणी हुई कि रत्नपुरके राजा रत्नांगदकी रानी रत्नवतीके गर्भसे यह कन्या उत्पन्न हुई
और इसे यहाँ रत्नांगदके वैरी किसी खेचर-विद्याधर-ने लाकर डाल दी है। यह सुन मैने निःशंक भावसे उसे उठा लिया और लाकर अपनी निःसन्तान प्रियाकी गोदमें दे दी; तथा उसका नाम गुणवती रख दिया । वह मेरे यहॉ पल कर सयानी हो गई। वही यह मेरी पुत्री है । तुम मेरी इस पुत्रीको अपने पिता सांतनु राजाके लिए ग्रहण करो । इसके बाद गांगेय गुणवतीको लेकर अपने नगरको लौट आया और वहाँ उसने विधिपूर्वक उसका अपने पिताके साथ व्याह कर दिया । गुणवती पत्नीको पाकर सांतनु वड़ा सुखी हुआ, जैसे कि गरीव पुरुष भारी खजानेको पाकर सुखी होता है । गुणवतीको गधिका और योजनगंधिका भी कहते हैं । कुछ काल बाद उसके गर्भसे खोटी आदतोंसे रहित और उत्तम अभ्यास करनेवाला एक व्यास नाम पुत्र पैदा हुआ। वह पापको घटानेवाला धर्मात्मा था । सवाका रवामी था। उसकी भामिनीका नाम था सुभद्रा । वह बड़ी भद्र थी । उसके गर्भसे तीन पुत्र उत्पन्न हुए । उनके नाम थे क्रमसे धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर । ये तीनों वहुत ही सुन्दर थे । बड़े बली और वलसे उद्धत थे।
भरतक्षेत्रके हरिवर्प नाम देशमें एक भोगपुर नाम नगर है । वह अतिशय शोभाशाली है । उसमें सभी भोग-सामग्री मौजूद है, जिससे वह इन्द्र आदि देवता-गणके स्वर्ग-स्थानको भी जीतता है । आदिनाथ प्रभु द्वारा स्थापित हरिवंशका प्रभंजन नामका वहाँ राजा था । उसे सभी सुख प्राप्त थे । वह सुखका सागर था। उसकी मियाका नाम था मृकंडू । वह रूपवती, लावण्यवती और भाँति भॉतिके भूषणोंसे विभूपित थी । उसके गोल और कठिन स्तन थे तथा केलेके खंभेकी नाई सुन्दर जॉचे थीं । अधिक कहॉ तक कहा जावे वह इन्द्रकी शचीसे किसी भी बातमें कम न थी।
कौशाम्बी नगरीमे एक सेठ रहता था । उसका नाम था सुमुख । वह सुन्दर मुखवाला और धनी था । उसने किसी वक्त धन-दौलतके लोभमें आ