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पाण्डव-पुराण |
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पूछा कि आज महाराजका मुँह मलिन क्यों हो रहा है ? इसके उत्तर में मंत्रीने गांगेयको सारा कच्चा हाल कह सुनाया । तव गांगेय उसी वक्त उस धीवर के घर गया और धीवरको कहने लगा कि तुमने जो राजाका अनादर किया | यह अच्छा नहीं किया । उत्तरमें वह घविर बोला कि कुमार इसका कारण सुनिए । वह यह कि जो सौतका पुत्र होते हुए भी अपनी कन्या देता है वह अपनी प्राणोंसे प्यारी पुत्रीको अँधेरे कुएमें ही ढकेल देता है । हे नररत्न ! जिसके तुम सरीखे सौत - पुत्र मौजूद हो, तुम्हीं कहो कि मेरी कन्या के पुत्रको कैसे सुख हो सकता है ? क्या सिंहके होते हुए मृग-गण भी सुखी हो सकते हैं ?
कुमार ! मेरी पुत्रीकी भावी सन्तान किसी तरह भी राज्यको नहीं भोग' सकेगी; किन्तु उल्टी आपत्तिमें फॅस जायगी । क्योंकि तुम्हें छोड़कर राजलक्ष्मी दूसरेके पास नहीं जा सकती; वह दूसरेको पसंद नहीं कर सकतीजैसे कि समुद्रको छोड़कर नदियाँ तालावोंमें गिरना पसंद नहीं करतीं । इस पर गांगेयने अपने भावी मातामहको यों समझना आरम्भ किया कि यह केवल मात्र आपका भ्रम है । क्योंकि और और वंशोंसे इस कुरुवंशका निराला ही स्वभाव है । बताइए कि कहीं हंस और बगुलेका भी एक स्वभाव हो सकता है । और भी सुनिए कि मै गुणवती सतीको अपनी मातासे भी कहीं अधिक आदरकी दृष्टिसे देखूँगा । इसके बाद गांगेयने हाथ उठा कर कहा कि मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि गुणवतीकी भावी संतान ही राज- पाटकी भोक्ता होगी, मैं नहीं । इस पर फिर धीवरने कहा कि कुमार ! आगे जो आपकी सन्तान होगी वह कैसे किसी दूसरेके राज-काजको सह सकेगी खड़ा होता है कि गुणवतीकी सन्तान राज्यसे वंचित ही रह जायगी । यह सुनते ही गांगेय उसके अभिप्रायको ताड़ गया और कहने लगा कि तुम्हारी इस चिन्ताको भी मैं अभी अभी मिटाये देता हूँ । यहाँ तुम और आकाशमें सिद्ध, गंधर्व, विद्याधर वगैरह सभी सुनो कि आजसे मैं जन्म भरके लिए ब्रह्मचारी होता हूँ; ब्रह्मचर्य लेता हूँ | इतनी बातचीत के बाद धीवरने कन्याको बुलाया और अपनी गोद में बैठा लिया । इसके बाद उस बुद्धिशालीने गांगेयसे कहा कि तुमने जो पिताके मनोरथको साधनेके लिये ब्रह्मचर्य व्रत लिया है इससे जान पड़ता है कि संसारमें तुम बड़े गुणवान् हो । दूसरे मैं तुमसे एक कहानी कहता हूँ । उसे तुम सावधान चित्त हो सुनो ।
अतः फिर भी वही प्रश्न
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