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________________ आठवाँ अध्याय। ९७ राज्य पाकर बलि कुवेरकी नॉई खूब ही धन लुटाने लगा और उसने जाकर सातसौ मुनियों सहित अकंपन आचार्यको सेनाके द्वारा वेढ़ लिया । कारण, वह उन साधुओं पर पहलेसे ही रुष्ट था । वह अग्निमय यज्ञ करवा कर उन्हें संताप देने लगा। यह खबर जव विष्णुकुमार मुनिको लगी तव वे चलकर उदासीन भावको धारण करनेवाले पद्मरथ राजाके पास आये और उससे उन्होंने प्रेरणा कर कहा कि सत्पुरुपों द्वारा वन्दित और पूजित इस राज्य-पद पर स्थित होकर भी आप इस दुर्जन मंत्रीको अन्यायसे क्यों नहीं रोकते । हे कोविद ! मेरे इस प्रश्नका आप जल्दीसे उत्तर दीजिए । राजाने उत्तरमें कहा कि मैं सात दिनके लिए पलिको राज-पाट दे चुका हूँ। इस लिए अब मैं उसको रोक नहीं सकता। हाँ ! यदि आप रोक सकते हैं तो भले ही रोक दीजिए। इसके उत्तरमें विष्णुकुमारने कहा कि दुष्ट पुरुप जल्दीसे न्यायके रहस्यको नहीं पहिचान सकते । राजन् ! न जाने तुममें यह खलता कहाँसे आ गई, जो तुम पूज्य पुरुषोंका अनादर होते हुए भी नहीं चेतते । इसमें सन्देह नहीं कि मैं तो इस पापिष्ट और चतुराई-विमूढ़ पुरुपको इस अन्यायसे रोकूँगा ही । इतनी बातचीतके वाद विष्णुकुमारने वामनका रूप बनाया और वे उसी वक्त यज्ञभूमिमें पहुँचे । वहाँ उस वामनने अपनेको ब्रामण वर्णका बतलाया । वह कहने लगा कि मैं वेदवेदांगका पारगामी द्विज हूँ; वेदके अर्थको खूब समझता हूँ। और आप मनोरथको सिद्ध करनेवाले दाता हैं । अतः मुझे भी कुछ दान दीजिए । यह सुन वह चलीं बलिराजा वोला कि जो तुम्हारा जी चाहे सो तुम मॉग लो। मैं अवश्य दूंगा । क्योंकि पात्रमें द्रव्य देनेसे पदलेमें सुख मिलता है। इस पर विष्णुने कहा कि मुझे केवल तीन पैड भूमि चाहिए । इस पर वहाँ जितने लोग बैठे थे सब-के-सव वोल उठे कि विम ! तुमने इतनी थोड़ीसी याचना क्यों की। देखो, यह वलिराजा तो कुवेरकी नॉई महान दानी राजा है । फिर आपकी यह तनिकसी याचना कुछ ठीकसी नहीं मालम पड़ती । विष्णु बोला कि राजन् ! बहुत बातचीतसे कोई लाभ नहीं । वस, आप तो अब संकल्प-धारा छोड़िए। इसके बाद तीन पैंड पृथ्वीका संकल्प हुआ और संकल्पके बाद ही विष्णुकुमारने सारे संसारको घेरनेके लिए विक्रियाऋद्धिके द्वारा बड़ा भारी रूप बना लिया । इसके बाद उसने पॉव फैलाकर एक पॉव तो सुमेरुके शिखर पर रक्खा और दूसरा मानुपोत्तर पर्वत पर रक्खा । उस समय सुर-असुर और नारद आदि सभी वीणा ले-ले कर संगीत द्वारा उनका यशो गान कर पाण्डव-पुराण १३
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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