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पाण्डव-पुराण । उन्होंने जैसाका तैसा सब हाल गुरुवर्यको कह सुनाया। इस पर गुरुवर्य ने कहा कि वत्स ! तुम जाओ और जहाँ वाद-विवाद हुआ है वहीं जाकर रात भर ठहरो; नहीं तो सब संघको आपत्तिमें पड़ना पड़ेगा। गुरुकी इस आज्ञाको शिरोधार्य कर श्रुतसागर गये और जहाँ वाद-विवाद हुआ था वहीं पहुंचे । रातके वक्त वे दुष्ट उन्हें मारनेको चले । वे जा रहे थे । इतनेमें मार्गमें वादके स्थल पर उन्हें सहसा वे ही मुनि देख पड़े। उन्हें देखते ही उन दुष्टोंके क्रोधका पारा चढ़ गया और वे हथियारों द्वारा उन्हें मारनेको तैयार हो गये । उन्होंने मुनिके ऊपर ज्यों ही हथियार छोड़ें त्यों ही पुरदेवताने आकर उन्हें बीचमें ही रोक दिया; उनके हथियार कील दिये । तब वे बहुत घबड़ाये । उनका चित्त बहुत ही व्याकुल हुआ। और अचंभेकी बात यह हुई कि उन्होंने जो मुनिको मारनेके लिए उन पर तलवारें उठाई थीं उनसे उन मुनिके ऊपर तोरण जैसी अपूर्व शोभा हो गई। सवेरा हुआ। राजाको खबर लगी। राजाने वहाँ आकर उन्हें दुष्कृत्यमें प्रवृत्ति करनेके कारण कीले हुए खंभेसे खड़े देखे । राजा बहुत विगड़ा । उसने उनका सिर मुड़ाकर गधे पर चढ़ा शहरसे वाहिर निकलवा दिया । वहाँसे वे राजा पद्मरथके पास हस्तनापुर गये और उन्होंने पद्मरथके साथ बहुत नम्रताका व्यवहार किया, जिससे उसने उन्हें अपना मंत्री बना लिया और उनकी सब तरह रक्षा की। इसके बाद एक समय पद्मरथके एक शत्रु राजाने उसे बहुत ही डर दिखाया जिससे पद्मरथ बड़ा भयभीत हुआ और प्रजामें भी कोलाहल मच गया । उस वक्त बलि मंत्रीने नाना युक्तियों द्वारा शत्रु को पकड़ लिया । इससे राजा पद्मरथ उस पर बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने उसे आज्ञा की कि इस समय तुम जो जी चाहे मॉगो। इस पर बलिने कहा कि महाराज, मैं सात दिनके लिए आपका राज्य चाहता हूँ । राजा तो उस पर मोहित हो ही चुका था, अंतः उसने सात दिनके लिए उसे राज्य देना स्वीकार कर लिया। इसके बाद एक समय विहार करते करते अकंपन आचार्य सातसौ मुनियोंके संघ-सहित वहाँ आ गये और योगकी सिद्धिके लिए उन्होंने वर्षाऋतुमें भी वहीं रहना स्वीकार किया । तथा उन्होंने सब योगि-, योंसे यह भी कह दिया कि आप लोग वादियोंसे वाद-विवाद नहीं करना नहीं तो वड़ा-भारी संताप भोगना पड़ेगा .। मुनियोंके आनेकी खबर बलिको मालूम हुई तब वह राजाके पाप्त गया और उसने पूर्व प्रतिज्ञाके अनुसार उससे सात दिनके लिए राज्य माँगा । राजाने भी उसे सात दिनको राजा बना दिया।