SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४ पाण्डव-पुराण | जालोंका छोड़ कर निर्द्वद हो उनका निर्वाण महोत्सव मनाया - जिससे उनकी आत्मा पवित्र हो गई; उनका पाप-मल हलका हो गया । wwwwwwwwww उन अरजिनकी जय हो जो वैरियोंके समूहको जीतनेवाले हैं, जिनके चरण कमलों की सुरेन्द्रों के समूह भी पूजा करते हैं, जो सब विद्याओंके भंडार हैं, जो भव्य जीवोंको धर्मका उपदेश करते है और जो धर्म-मय और धर्मसे सुशोभित परमात्मा हैं । जो महात्मा पहले धनपति नाम राजा थे वह बाद मुनियों में I श्रेष्ठ मुनीश्वर हुए और आत्म-संयम तथा शत्रुओं पर विजय पाने के प्रभाव से संजयंत विमान में देवतोंके अधिपति अहमिन्द्र हुए । वहाँसे चय कर भरत क्षेत्र में धर्मात्माओंके पति धर्मराज - तीर्थकर हुए । अरजिन तीर्थकर, सम्पूर्ण मनुष्योंके स्वामी चक्रवर्ती और कामदेव थे । तात्पर्य यह कि वे तीर्थंकर, चक्रवर्ती और कामदेव इन तीन पदोंके धारक थे । वे तुम्हारी रक्षा करें ।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy