________________
पाण्डव-पुराण।
wwwwww
सातवाँ अध्याय ।
उन अरजिनको नमस्कार करता हूँ जो कर्म-शत्रुओं पर विजय-लाभ
करनेवाले हैं, चक्रवर्ती आदि जिनकी पूजा करते हैं, जो सभी गुणोंके आधार और सार है। तथा जो तीर्थकर हैं सारे संसारसे उत्कृष्ट हैं। ___ इस तरह और और बहुतसे राजोंके हो चुकने पर कुरुवंशमें एक सुन्दराकृति सुदर्शन नाम राजा हुआ । उसकी प्रियाका नाम था मित्रसेना । वह सती थी। श्रीआदि देवियाँ उसकी सेवा करती थीं। 'उसके निमित्तसे पृथ्वी पर धनकी धारा पड़ती थी। एक दिन उसने सोलह स्वमोंको देखा और फाल्गुन सुदी तीजके दिन गर्भको धारण किया । उसका गर्भ संसारके लिए शुभ था; कल्याणका दाता था । उसी समय प्रभुका स्वर्गावतरण कल्याणक करनेको चार निकायके देवता-गण आये। परम उत्साहसे उन्होंने उत्सव किया । इसके बाद प्रभुके माता-पिताको नमस्कार कर वे स्वर्ग-स्थानको चले गये। यद्यपि उस निर्मल गर्भका बहुत भार था तो भी मित्रसेनाको यह भार कुछ भी न जान पड़ता था। इसके बाद गर्भके दिन पूरे हो जाने पर अगहन सुदी चौदसके दिन उसने पुत्ररत्नको जन्म दिया। जन्मसे ही प्रभु तीन ज्ञानके धारक थे । वे तीर्थकर थे। इसी समय स्वर्गसे इन्द्र आदि देवता-गण आये और प्रभुको सुमेरु पर्वत पर ले गये । वहाँ उन्होंने प्रभुको सुवर्णके कलशोंसे स्नान कराया और उनका अर नाम रखा । क्रम क्रमसे कुछ काल बाद प्रभु युवा अवस्थाको प्राप्त हुए। उनका शरीर तीस धनुष ऊँचा था, ताये हुए सोनेकीसी कान्तिवाला था। उनकी आयु चौरासी हजार वर्षकी थी। प्रभुका एक हजार कन्याके साथ व्याह हुआ । इसके कुछ काल बाद वे राजा हुए । देवता-गण हमेशा आ-आकर उनको नमस्कार करते थे । कुछ समय बाद उनकी आयुधेशालामें चक्र-रत्न उत्पन्न हुआ, जिसके द्वारा अरजिनने बत्तीस हजार राजोंको अपने अधीन किया, उन्हें नमाया । वे अर चक्रवर्ती पुण्यात्मा और कृतकृत्य थे । उनके यहाँ अठारह करोड़ घोड़े, चौरासी लाख हाथी तथा चौरासी लाख ही रथ थे। वे इतनी विभूतिके स्वामी थे । इसके सिवा वे बत्तीस हजार देशोंके स्वामी थे। छियानवें हजार स्त्रियोंके भोक्ता थे । वहत्तर हजार पुरोंके रक्षक थे । एवं ।' निन्यानवें इजार द्रोण और अड़तालीस हजार पत्तनोंके वे मालिक थे । उन