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छठा अध्याय। amamannamromainwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww mmmmmmmmmmmmistrino mmmmameimulumnwmnnar
अचम्मकी बातें हुई । एवं प्रभु सहेतुक वनमें सोलह वर्ष छमस्थ-अवस्थामें रहे । वाद तिलक क्षके नीचे बैठे हुए उन उद्यमशील प्रभुने घाति कर्मोंका नाश फर चैत सुदी तीजके दिन शामके समय केवल-ज्ञान लाभ किया । इस समय कुवेरने आकर प्रभुके समवसरणकी रचना की; और सुर-असुर तथा मनुष्यगण आ-आकर उनकी-वन्दना-रतुति करने लगे । प्रभुकी सेवामें स्वयम्भू आदि पैंतीस गणधर उपस्थित थे । उनके समवसरणमें सातसौ यतीश्वर और तिरेपन हजार एकसौ पचास शिष्य थे। दो हजार पाँचसौ अवधि ज्ञानी और तेतीस हजार फेवलज्ञानी ये । पाँच हजार एकसौ विक्रिया ऋद्धिके धारक और मनःपर्यय ज्ञानी तेतीससौ थे । एवं वाद-विजेता वादी दो हजार पचास थे । सब मिला कर कुल साठ हजार यतीश्वर थे । तथा ६० हजार तीनसौ पचास भर्जिकाएँ थी । दो लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थी । इसी तरह असंख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंच थे । इस प्रकार संघ-सहित प्रभुने सव पृथ्वीतल पर विहार किया । अन्तमें विहार करते करते वे हजारों मुनियों सहित सम्मेदाचल पर पहुँचे । वहाँ प्रमुने एक महीने तक योगनिरोध किया; और सम्पूर्ण शेष कोको नाश फर चे मोक्ष-स्थानको चले गये। प्रभुके साथ-साथ और और बहुतसे मुनि भी मोक्ष-अवस्थाको प्राप्त हुए । आजके दिन वैशाख सुदी पड़वा थी । प्रभुका निर्वाण जान उत्कंठित हुए बहुतसे देव आये। उन्होंने प्रभुका खूब निर्वाण-महोत्सव मनाया और प्रभुको नमस्कार किया । इसके बाद ममुके गुणोंको स्मरण करते हुए इन्द्र आदि सभी देवता-गण वहाँसे स्वर्गको चले गये।
जो पहले, पूर्वविदेह राजोंके मुकुटोंके तटसे स्पर्शित हैं चरणकमल जिसके ऐसा वैभवशाली सिंहरथ नाम राना था और वहाँसे फिर सर्वार्थसिद्धिको गया; एवं सर्वार्थसिद्धि विमानसे चयकर जो कुंथु आदि जीवोंकी दयाके पालक और उनको सुख देनेवाले कुंथुनाथ प्रभु हुए । कुंथुनाथ प्रभु चक्रवर्ती, तीर्थकर और कामदेव इन तीन पदोंके धारक हुए। वे हमें उत्तम उत्तम गुणोंका दान दें और हमारी पुष्टि करें । जो पाप-रूपी-वैरियों पर विजय-लाभ करनेवाले हैं, कामदेवको गथ कर चकनाचूर करनेवाले हैं एवं जो पृथ्वीतल पर धर्मका प्रचार करनेवाले और तीन लोक द्वारा पूजे जानेवाले हैं; वे कुंथुनाथ भगवान् तुम्हारी रक्षा करें । जो कुंथु आदि जीवोंकी दयासे भरपूर है, उत्तम मार्गके पथिक और तीर्थकर हैं, चक्रवर्ती हैं और पुण्यके भंडारको भरनेवाले हैं तथा संसार-रूप वनको जला देनेवाले हैं वे प्रभु सबको सुख दें।