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पाण्डव-पुराण |
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कहते हैं; और अपने शुभ-अशुभ भावोंसे इकट्ठे किये हुए पुण्य-पाप कर्म ही जीवोंको सुख-दुःख देते हैं। कर्मके निमित्तसे वे वॅधते और जन्म लेते है। कर्म के बड़े संकटको सहते हैं । एवं कर्मके निमित्तसे ही जीवोंको सांसारिक सुख होता है । इसके बाद फिर भी देवियोंने पूछा कि देवी ! सूर्यसे क्या उत्पन्न होता है ? विद्वानों के मुँहमें क्या रहता है १ अर्जुन किसे कहते हैं ? और गंगा किसे कहते हैं ? रातीने उत्तर में कहा भागी - रथी । तात्पर्य यह कि सूरजसे भा— आभा-- उत्पन्न • होती है । विद्वानों के मुँह में गी वाणी - सरस्वती रहती है। अर्जुन रथीको कहते हैं । और गंगा भागरथीको कहते हैं । इस तरह प्रभुकी माताका दिल बहलानेके लिए देवियों प्रश्न करती थीं और माता उत्तर देती थी । इसके वाद जब नौ महीना पूरे हो गये तब उस देवीने वैशाख सुदी पड़वा के दिन पुत्ररत्नको जन्म दिया; जिस भाँति पूरव दिशा सूरजको जन्म देती है । प्रभुका जन्म जान कर इसी समय स्वर्ग से इन्द्र आदि देवता- गण आये; और वे आकाशगामी मञ्जुको सुमेरु पर्वतकी शिखरपर ले गये । वहाँ उन्हें सिंहासन पर विराजमान कर और भाँति भॉतिके उत्तम पाठको पढ़कर उनकी स्तुति की; और क्षीरसागरका जल लाकर उनका अभिषेक किया | उनका कुंथुनाथ नाम रखा । इसके बाद उन्हें वापिस नगरको ले आये और उनके माता- पिताको सौप दिया । क्रम क्रमसे बढ़कर प्रभुने यौवन अवस्था में पैर रक्खा । इस समय प्रभुके सभी गुण वृद्धिंगत थे । उनके शरीरकी ऊँचाई पैंतीस धनुष थी। उनकी कान्ति ताये हुए सोने सरीखी थी । मञ्जुकी आयु पाँच हजार वर्ष कम एक लाख वर्षकी थी । कुछ काल बाद प्रभुका राज्यभिषेक हुआ और नीति से प्रजा पालन करते हुए वे राज -सुख भोगने लगे । इसके बाद उनकी आयुधशाला में चक्र रत्नकी उत्पत्ति हुई, जिलको पाकर वे छहों खंडके राजा चक्रवतीं हो गये । एक दिन उन्हें अपने पिछले भवकी याद हो आई और वे संसार से विरक्त हो गये । यह जान पाँचवें ब्रह्मस्वर्ग से लौकान्तिक देव आये और संसारसे उदास-चित्त प्रभुकी उन्होंने स्तुति की। इसके बाद प्रभुको दीक्षा लेने को तैयार देख वे प्रभुकी स्तुति पूजा कर अपने स्थानको चले गये । इसके बाद प्रभु अपने पुत्रको राज-पाट संभला कर विजया नाम पालकीयें सवार हो देवेन्द्रों के साथ-साथ सहेतुक वनमें पहुँचे । वहाँ उन्होंने केशलोंच कर हजारों राजों के साथ-साथ संयमको, धारण किया और उसी दिनसे उन्होंने छह दिन बाद आहार लेने की हमेशा के लिए प्रतिज्ञा की। वहीं हस्तनागपुर में धर्ममित्र नाम एक श्रावक रहता था । उसने पारणाके दिन प्रभुको खीरका आहार दिया; जिससे उसके घर पॉच