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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
प्राचार्य कुन्दकुन्द ने कई ग्रंथो की रचना की । उनमे समयसार, प्रवचनसार, पचास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाहुड ( प्राभृत), दसन्ति अथवा भत्ति सग्गहो ( दस भक्ति अथवा भक्ति संग्रह) एव बारस-प्रणुवेक्खा ( द्वादशानुप्रेक्षा) प्रादि ग्रंथ प्रमुख है। दिगम्बर समाज मे समयसार ग्रंथ का बहुत प्रचार है । इस ग्रंथ पर कई आचार्यो ने टीकाये भी की है ।
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तामिल भाषा के ग्रथ 'तिरुकुरल' या 'कुरल' के रचयिता भी आचार्य कुन्दकुन्द ही है, ऐसी कई विद्वानो की धारणा है । प्राचार्य कुन्दकुन्द की जैन धर्म को सबसे बडी देन उनकी उपरोक्त कृतियाँ ही हैं । इसीलिये मगलाचरण मे उनका नाम भगवान् महावीर तथा गौतम गणधर के बाद ही लिया जाता है ।
[३.२] हेमाचार्य : पल्लीवाल जाति के संस्थापक 12
हम दो आचार्य पट्टावलियो का वर्णन कर चुके है । उनमे अलग एक अन्य पट्टावलो 'श्री लबेचू समाज का इतिहास' में प्रकाशित की गई है । यह पट्टावली वटेश्वर (सौरीपुर ) के श्री दि जैन मन्दिर मे प्राप्त पट्टावलों के प्राचार पर बनाई गई है। इसके अनुमार विक्रम संवत् 26 से 40 के मध्य श्री हेमाचार्य ने पत्नीवाल जाति की स्थापना की । इसी पट्टावली मे दो स्थानो पर मुनि कुन्दकुन्द का भी उल्लेख है। इसी एक ही नाम कुन्दकुन्द के दो अलग-अलग मुनि हुये है । एक सवत् 1249 मे तथा दूसरे सवत् 1385 मे होने का उल्लेख है। दोनो मुनिराज पल्लीवाल जाति के थे ।
यह पट्टावली पूर्वोक्त दो पट्टावलियो से मेल नही खाती है । कई स्थानो पर ग्रन्तर स्पष्ट है । प्राचार्य कुन्दकुन्द स्वामी का समय विक्रम पहली शताब्दि होना निर्विवाद है। हॉ, इस नाम के अन्य मुनि हो सकते है ।