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पल्लीवाल जाति के ऐतिहासक प्रसग
यह पट्टावली अशुद्ध प्रतीत होती है। प्रत, श्री हेमाचार्य को पल्लीवाल जाति का सस्थापक मानना सदिग्ध है। [३.३] पल्लव-वश तथा पल्लीवाल जाति
पल्लव वश दक्षिण भारत के तामिल प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध प्राचीन राजवश रहा है। कुछ लोग इस वश को पल्लीवाल जाति से सम्बन्धित मानते है। पल्लवो की राजधानी मद्रास के निकट 'काचीपुरम्' थी तथा इस वश का शासन पहली शताब्दी से लेकर
आठवी शताब्दी तक न्यूनाधिक रूप मे रहा है । पल्लव-वशी राजा शिवस्कन्द आचार्य कुन्दकुन्द से बहुत प्रभावित था । उसने प्राचार्य श्री से अपने राज्य में रहने के लिए विशेष अनुरोध किया तथा जैन धर्म का प्रचार भी किया। ___कि प्राचाय कुन्दकुन्द पल्लीवाल जाति के थे, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पल्लवो का पल्लीवाल जाति के लोगो से घनिष्ठ मम्बन्ध रहा है। पल्लव तथा पल्लीवाल मिलते-जुलते शब्द भी है। इसी कारण कुछ लोगों का मानना है कि पल्लव वश तथा पत्लीवाल जाति एक ही है।
लेकिन ऐसा मानना अनुचित है क्योकि पल्लव-वश आठवी शताब्दी तक का प्रसिद्ध राजवश रहा है। ग्यारहवी शताब्दी से आग का पत्लीवाल जाति का इतिहास पूरी तरह उपलब्ध है। यदि परस्पर इन दोनो का सम्बन्ध रहा होता तो इसके प्रमाण उपलब्ध होने चाहिएँ थे। इतने कम अन्तराल (नौ वी-दसवी शताब्दी का समय लगभग 200 वर्ष) के लिये प्रमाणो का अभाव रहे, असम्भव ही है। [३.४] पल्ली तथा पल्लोचन्दम्
पल्ली सथा पल्लीचन्द्रम् तामिल भाषा के बहु-प्रचलित शब्द है तथा ये कई अर्थो में प्रयुक्त होते है । 'पल्ली' शब्द ईसा पूर्व