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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
अर्थ यह तो नही कि पल्लीवाल जाति का भी पाली से सम्बन्ध रहा है । दूसरी ओर पल्लोवाल जाति का पल्ली नाम के नगरो से सम्बन्ध रहा है, इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। अत पालो से पल्लीवाल जाति का सम्बन्ध या वहाँ से इसकी उत्पत्ति मानना गलत है। [२.४] पालीवाल तथा पल्लीवाल
श्री लोढा जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पालीवाल ब्राह्मण तथा पल्लीवाल वैश्यो मे पुरोहित एव यजमान का सम्बन्ध था, लेकिन ऐसा मानना तर्क संगत नही है क्योकि पालोवाल ब्राह्मणो के इतिहास से स्पष्ट है कि वे अति धनवान तथा कुशल व्यापारी थे। (देखे परिशिष्ट-'पालीवाल ब्राह्मण') वैसे इस बात का कोई प्रमाण भी नहीं है, यह लोढा जी का मात्र अनुमान हो लगता है।
श्री लोढा जी पल्लीवालो का निकाम भी पालीवालो के निकास की भॉति पाली मे हो मानते है। साथ हो उनके पाली त्याग की घटना को भी पालीवालो की तरह का ही मानते हैं । पालीवालो के इतिहास से स्पष्ट है कि पालीवालो को कुछ विशेष कारणो से पाली नगर छोडना पडा था, इसलिए कालान्तर मे जहाँ भी वे रहे, वे पालीवाल ब्राह्मणो के रूप में प्रसिद्ध हो गये। प्रश्न उठता है कि पल्लीवाल जैनो को पाली छोडकर क्यो जाना पड़ा? यजमान के साथ पुरोहित विस्थापित हो जाय, यह तो सम्भव है, लेकिन पुरोहित के साथ यजमान भी चले जाँय, ऐसा होना समझसम्भावना से परे है।
श्री लोढा जी ने इन प्रश्नो का सतोषजनक उत्तर नही दिया है । उन्होने पालीवाल ब्राह्म गो की कहानी दोहराकर कह डाला है कि पल्लीवाल भी इन पालीवाल ब्राह्मणो के साथ पाली छोडकर चले गये । लेकिन यह कहना आधारहीन है । पहली बात तो