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पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति र विकास मात्तियां एक ऐतिहासिक दृष्टि
वशी राजा कुकुट्ट के प्रशस्त कार्यों का उल्लेख है। (2) एक लेख वि स 1334 का प्राप्त हुआ है जिसमे आकाश मार्ग से पाटण मे पल्लीपुर तक गमन करने का उल्लेख है। (पाटण गुजरात में स्थित है) । (3) एक अन्य लेख वि स 1389 का है जिसमें तीर्थ स्थानो की सूची मे 'पल्लयाँ' का उल्लेख है । (4) एक लेख वि स. 1215 का है जिसमे भी पल्ली शब्द का प्रयोग हुआ है। इन सभी लेखो मे पल्ली नगर का उल्लेख किया गया है, लेकिन इस भूमिका के लेखक ने इसे मारवाड मे स्थित पाली नगर ही मान लिया है।
इमो भूमिका मे लिखा है कि जैसलमेर स्थित किले के ग्रन्थ भण्डार में रखी हुई 'पचाशक-वृत्ति' नामक ताडपत्रीय पुस्तक के अन्त मे दो पद्य है, जिनमे लिखा है कि "वि स 1207 मे 'पल्ली-भग' के समय उस त्रुटित पुस्तक को ग्रहण किया था, पीछे श्री जिनदत्त मूरि जी के शिप्य स्थिर चन्द्रगणी ने अपने कर्म क्षयार्थ अजयमेरु दुर्ग में उसके गत भाग को लिखा था।" इस लेख में भी पल्ली शब्द ही प्रयक्त हुया है जिसे पाली मान लिया गया है।
पल्लीवाला के चारण-भाट हिन्डौन निवासी थी कजोडीलाल नाय थे। उनसे प्राप्त एक हस्तलिखित 'प्रार्थना-पुस्तक' में भी पल्लीपुर नगर का वर्णन मिलता है । यह पुस्तक लगभग 180 वर्ष पूर्व लिखी गई थी। इसमे एक स्थान पर लिखा है कि पल्लीपुर गुजरात खण्ड के मध्य में स्थित है। सम्भवतया यह पल्लीपुर पूर्वोक्त पल्लीपुर ही है।
इस प्रकार हम देखते है कि पाली नाम के तो कई ग्राम व नगर विभिन्न स्थानो पर स्थित है ही, साथ ही पल्ली नाम के कई प्राचीन नगरो का भी उल्नेम्व मिलता है। लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो पल्लीवाल जाति का सम्बन्ध किसी पाली से होना सिद्ध करता हो। कुछ लेखो से पता चलता है कि मारवाड के पाली नगर म पल्लकीय गच्छ के प्राचार्यों ने मति-प्रतिष्ठा कराई। लेकिन पल्लकीय गच्छ का पाली से सम्बन्ध होने का